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बाज़ार हाज़िर है..

सर्वेश पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :246
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10271
आईएसबीएन :978-1-61301-627

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समीक्षात्मक लेख संग्रह

इस पुस्तक में संकलित लेख ‘भारतीय संविधान और हिंदी साहित्य’, बाबा भीमराव आंबेडकर की १२५वीं जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘संविधान की उद्देशिका : साहित्य, मानविकी, विधि, विज्ञान, एवं समाज वैज्ञानिक अनुशासन’ में प्रस्तुत किया गया था। इस लेख में बताने का प्रयास रहा है कि संविधान,साहित्य की राजनीतिक आवाज़ है तो साहित्य, संविधान की सृजनात्मक अभिव्यक्ति। हिंदी साहित्य खासकर कविता की आँख के सहारे देखने की कोशिश की गयी है की संसदीय लोकतंत्र की स्थापना से लेकर आज तक ‘स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व’ जैसे मानवीय मूल्यों की प्राप्ति में हम कहाँ तक सफल रहे और कहाँ हमने पस्ती खायी और क्यों ! ‘भाषा, बाज़ार और मीडिया’ नाम का लेख इस पुस्तक में अध्याय दो के रूप में दिया गया है। इस लेख में दिखाया गया है कि कैसे बाज़ार अपने महावशीकरण मंत्र के द्वारा शब्दों के अर्थ को बदलकर उसे ख़त्म करने में लगा हुआ है जिसमें मीडिया एक औज़ार के रूप प्रयुक्त है। इसी से संबंधित लेख ‘आपको बाज़ार से जो कहिए ला देता हूँ मैं’ पुस्तक में है। निर्मल वर्मा मेरे प्रिय रचनाकारों में से है। उनके द्वारा लिखे गए निबंध मुझे ज्यादा आकर्षित करते हैं। इस पुस्तक में उनके निबंधों पर तीन लेख हैं। ‘निर्मल वर्मा की आस्था और आत्मबोध’, ‘अंत नहीं आरम्भ’ एवं ‘निर्मल वर्मा के मार्फ़त भारतीय संस्कृति का मूल स्वरूप’। इन तीनों लेख के जरिए निर्मल वर्मा के विचारधारात्मक संसार के महत्त्वपूर्ण नुक्ते को प्रकाश में लाने की कोशिश की गयी है जो बौद्धिक जगत को उद्वेलित करते हैं जिसके कारण उनके समर्थन और विरोध में लामबंदी भी हुई। सियारामशरण गुप्त, नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं पर भी लेख है। उत्तरआधुनिकता में जो अस्मितावादी विमर्श चले हैं उनमें से आदिवासी कविता को लेकर ‘हाशिए की हसिया : आदिवासी कविता’ शीर्षक से लेख है। अमृता प्रीतम की कहानियों की जानिब, स्त्री-विमर्श को लेकर ‘औरत संसार की किस्मत है’ शीर्षक से इस पुस्तक में संकलित है। आज के दौर में सत्ता के चरित्र को लेकर ‘अंधेर नगरी’ प्रहसन किस प्रकार हस्तक्षेप करती है,इसको दिखाने का प्रयास ‘अंधेर नगरी और युगीन यथार्थ’ में किया गया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा हिंदी निबंधों की प्रौढ़ परंपरा चलती है अत: उनके निबंधों के प्रकार और शैली को लेकर लिखे गए लेख को भी इस पुस्तक में संकलित किया गया है।

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