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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

पहला परिच्छेद

1

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत के प्रभाव के कारण प्रतीची विचारों से प्रभावित इन्द्रनारायण तिवारी की मानसिक अवस्था एक समस्या बनी रहती थी।

इन्द्रनारायण के पिता रामाधार तिवारी जिला उन्नाव के एक छोटे से गाँव दुरैया में पुरोहिताई करते थे। दुर्गा, चंडी-पाठ, भागवत-पारायण, रामायणादि की कथा तो पुरोहितजी का व्यवसाय था। इसके अतिरिक्त घर पर भी पूजा-पाठ होता रहता था। पुरोहितजी के घर के साथ संयुक्त रघुनाथजी का मन्दिर था और उसमें भी कथा-कीर्तन चला करता था। इन्द्रनारायण के ये बचपन के संस्कार थे।

छठी श्रेणी में इन्द्रनारायण लखनऊ, अपने नाना के घर आ गया। उसको डी.ए.वी. स्कूल में भरती करा दिया गया। उसका नाना पंडित शिवदत्त दूबे नगर के वातावरण के कारण स्वतन्त्र विचारों का जीव था और उसके घर में रामाधार के घर से भिन्न वातावरण था।

अतः इन्दनारायण गाँव से–

‘परमानन्द कृपाभजन मन परिपूरन काम।
प्रेम भगति अनुयायिनी देहू हमें श्रीराम।।’


गाता हुआ लखनऊ पहुँचा; परन्तु वहाँ के वातावरण में वह सुनने लगा था—

‘काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या!’’

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