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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

यह पुस्तक हिन्दी के अन्यतम व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग्य-निबंधों का संकलन है। शायद ही हिन्दी साहित्य की किसी अन्य हस्ती ने साहित्य और समाज में जड़ जमाने की कोशिश करती मरणोन्मुखता पर इतनी सतत, इतनी करारी चोट की हो !

इस संग्रह के व्यंग्य-निबंधों के रचनाकाल का और उनकी विषयवस्तु का भी दायरा काफी लंबा-चौड़ा है। राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

आपको इस संग्रह में परसाई के बीहड़ अध्येता रूप के भी दर्शन होंगे। व्यंग्यकारों की विश्व-बिरादरी की चर्चा करते हुए, उनकी प्रमुख व्यंग्य रचनाओं का हवाला देते हुए प्रकारांतर से उन्होंने यहाँ यह भी स्थापित किया है कि हिन्दी व्यंग्य को घर की मुर्गी मानकर दाल की तरह उसका सेवन न किया जाए। अपने काम को सबसे पहले अपने समाज की जरूरत के पैमाने पर और उसके बाद सघनता की दृष्टि से विश्व-स्तरीयता के पैमाने पर तौलने की परसाई की इस सोच ने ही उनके लेखन को इस कदर टकसाली बनाया है।

हँसने और संजीदा होने की परसाई की यह महफिल भी उनकी बाकी सारी महफिलों की तरह ही आपके लिए यादगार बनेगी।

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