लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :114
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 0

धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

तेजी से घूमता घटनाचक्र

फरीद ने सन् 1519 में अपना पद त्याग दिया। यदि वह चाहता तो दोनों परगनों के सरदारों, सैनिकों और जमींदारों की सहायता से अपनी गद्दी बनाए रख सकता था। अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए उसने अपना पद स्वेच्छा से त्याग दिया। नियति उसे और बड़े, या कहं सबसे बड़े ओहदे के लिए वर्तमान पद के त्याग के लिए प्रेरित कर रही थी। किसी दूसरी जगह अपने भाग्य की परीक्षा लेने के लिए वह कानपुर के रास्ते से आगरे की ओर चल पड़ा। साथ में भाई निजाम भी था।

उस जमाने में उत्तर भारत का राजनीतिक केन्द्र आगरा था। सुल्तान सिकंदर के समय से ही इस नगर ने राजधानी का रूप धारण कर लिया था। उसका पुत्र सुल्तान इब्राहिम 1517 में गद्दी पर बैठा था। आगरे में फरीद ने इब्राहिम के मुख्य सलाहकार और शक्ति संपन्न अमीर दौलत खां के यहां नौकरी कर ली। उसकी सेवाओं से खुश होकर दौलत खां ने सुल्तान इब्राहिम से गुजारिश की कि वह हसन की जागीर फरीद को दे दे। सुल्तान ने अपने अमीर की बात मानकर जायदाद फरीद के नाम कर दी। 1520 ई. में हसन की मौत हो चुकी थी। तभी फरीद शाही फरमान लेकर सहसराम लौटा। फरीद को फिर आया देखकर वहां की रिआया, उसके रिश्तेदार और सैनिक बड़े प्रसन्न हुए। वहां पहुंचकर उसने सुलेमान और उसके भाई को मारकर भगा दिया। वे भागकर चैंद परगने के सूबेदार मुहम्म्द खान सूर की शरण में चले गए और वहीं से अपनी आदत के अनुसार षड्यंत्र करते रहे। पड़ोसी जागीर चैंद का मनसबदार मुहम्मद खां सूर फरीद के प्रतिद्वन्द्वी भाइयों की मदद कर रहा था। मुहम्मद सूर की नीयत दोनों भाइयों के झगड़े का फायदा उठाकर जागीर खुद हड़प लेने की थी। उसने फरीद को आक्रमण की धमकी दी क्योंकि अब तक इब्राहिम लोदी का शासन शिथिल हो चुका था। अतः कई सूबेदारों ने विद्रोह कर दिया था। बिहार के दरिया खान लोहानी के बाद उसके बेटे बहर खान ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया। अफगानों ने उसे अपना नेता मान लिया। फरीद की जागीर उसके अधिकार क्षेत्र में आ गई। अतः 1522 ई. में फरीद उसकी सेवा में आ गया। बहर खान जानता था कि फरीद वास्तव में स्वामिभक्त, सुयोग्य, परिश्रमी तथा विश्वसनीय है। पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी मारा जा चुका था। अब जागीर फिर फरीद के हाथ में आ गई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book