जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
अब विचार करने की बात यह है कि अरस्तू के लिखे हुए ग्रंथ कौन से थे-वे जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आस पास रोम में प्रचलित थे अथवा वे जो सिकंदरिया, परसिया आदि से स्पेन पहुंचे थे। निश्चय ही 13वीं शताब्दी ईसवी तक स्टोइक-काल (ईसा पूर्व 300 से ईस्वी सन् 260 तक) के ग्रंथ नष्ट हो चुके थे, नहीं तो, इब्नरुश्द के ग्रंथों के अनुवाद की आवश्यकता न होती। किंतु यदि नेलियस के पास रखे अरस्तू के ग्रंथ रोम पहुंच गए थे तो यह मानना कठिन है कि पूर्व से आए हुए ग्रंथ भी अरस्तू के हस्तलिखित ग्रंथों पर आधारित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में जिन ग्रंथों का अनुवाद हुआ था वे अरस्तू की शिष्य परंपरा से प्राप्त हुए थे। किंतु इन्हें अप्रामाणिक नहीं माना जा सकता। अरस्तू ने बारह वर्ष (ईसा पूर्व 334-322) लीकियम में शिक्षा दी थी। इतने दीर्ध काल में उनकी शिक्षाओं ने सम्प्रदाय का रूप ले लिया था। तभी तो अरस्तू के एथेंस से चले जाने और वहां उनका घोर विरोध होने पर, चीन के कन्फ्यूशियस की तरह, उनके शिष्यों की परंपरा ने उनके ग्रंथो को सुरक्षित रखने तथा उनकी शिक्षा का एथेंस के बाहर प्रचार करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने यथासंभव, अरस्तू की शिक्षाओं को दूषित होने से बचाया होगा।
फिर भी आज जो ग्रंथ उपलब्ध हैं उन्हें मिश्रित स्वभाव का ही मानना होगा। यूनान से जो ग्रंथ पूर्व की ओर गए थे उनके अरबी भाषा में अनुवाद हुए थे। मूल यूनानी से अरबी के अनुवादों में कुछ अंतर अवश्य आ गए होंगे। फिर, अरबी से स्पेन की भाषा में और उससे लेटिन अनुवाद होने पर भी कुछ परिवर्तन हो जाना स्वाभाविक ही है। आधुनिक संपादकों ने स्टोइक-काल के बचे-खुचे अंशों और नवीन लेटिन के अनुवादों की सहायता लेकर ही अरस्तू के ग्रंथ तैयार किए हैं। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि उपलब्ध ग्रंथ उन्हीं ग्रंथों के अक्षरशः अनुवाद हैं जो अरस्तू ने अथवा उसके शिष्यों ने लिखे थे। पर हमें यही मानना पड़ेगा कि शोधकर्ताओं ने अरस्तू के ग्रंथों को, जिस रूप में प्रस्तुत किया है, वही उनका प्रामाणिक रूप है।
प्लेटो की अपेक्षा अरस्तू का दर्शन शुष्क, अनाकर्षक और बोझिल है। उसके अवशिष्ट लेख टिप्पणियों के समान है। तथापि परवर्ती प्लेटोवादियों ने अरस्तू का पढ़ना आवश्यक माना एवं आलोचनात्मक परीक्षण के साथ निरंतर उसका उपयोग किया। अरस्तू प्लेटो से अधिक सुव्यवस्थित है। वस्तुतः यूनानी दर्शन के इतिहास में उसे सबसे अधिक व्यवस्थित दार्शनिक माना जाता है। अरस्तू का सर्वाधिक योगदान नैतिक दर्शन के क्षेत्र में है। नीतिशास्त्र विषय का अध्ययन करने वाले किसी भी अध्येता के लिए उसके ग्रंथ का अध्ययन आवश्यक है।
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