जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
हम नहीं जानते !
अरस्तू को आकाशीय विद्युत के अस्तित्व का पता नहीं था इसलिए उसने गर्जन, कौंध, और वज्रपात को भी, पुच्छल तारे की तरह, सूखी भाप के जलने से ही उत्पन्न होना बताया है।
अरस्तू ने इन्द्रधनुष को प्रकाश के परावर्तन से उत्पन्न बताया है। संभवतः उसे आवर्तन का ज्ञान न था।
स्त्री-पुरुष के भेद के विकास के संबंध में अरस्तू कोई युक्ति-युक्त बात न कहकर बताता है कि पुरुष का स्वभाव ऊष्ण और स्त्री का शीतल होता है।
अरस्तू को वस्तुओं के रासायनिक स्वभाव का ज्ञान न था। वह भौतिक गुणों को ही रासायनिक गुण मान बैठा था। आर्द्रता, शीतलता आदि साधारण भौतिक अवस्थाओं में परिवर्तन लाकर वह वस्तुओं के रासायनिक अवयवीकरण में अंतर उत्पन्न करने की अभिलाषा कर रहा था।
वस्तुओं के मूल रासायनिक अवयवों का भी उसे ज्ञान न था। जल, वायु, पृथ्वी आदि समांग एवं विषमांग वस्तुओं को वह तत्व मान बैठा था।
अरस्तू का कहना था कि झगड़े तभी बढ़ते हैं जब समान भाग के अधिकारियों को असमान भाग और असमान भाग के अधिकारियों को समान भाग मिलते हैं। न्यायाधीश योग्यता के अनुपात में विभाजन कर ऐसे मामले निपटा सकता है। परंतु योग्यता का निर्धारण कैसे हो, इसका निश्चित उत्तर अरस्तू के पास नहीं था।
मानव शरीर रचना के संबंध में अरस्तू तथ्यों की भारी भूलें करता है क्योंकि अन्य प्राणियों की तरह उसने मनुष्य का विच्छेदन नहीं किया था।
यूनानियों के भौगोलिक ज्ञान में भारत तत्कालीन ज्ञात संसार की पूर्वी सीमा थी। अरस्तू इस पूर्वी सीमा के पश्चात समुद्र का अस्तित्व मानता था।
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