जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
4. दार्शनिक ज्ञान : दार्शनिक ज्ञान में प्राथमिक सत्यों तथा उसके निष्कर्षों की उपलब्धि होती है। इसके द्वारा मानवीय शुभों का ही नहीं वरन् संपूर्ण जगत के शुभों का ज्ञान हो जाता है। इसलिए यह ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान से श्रेष्ठ है।
दार्शनिक ज्ञान में वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्रातिभ ज्ञान दोनों का समाहार हो जाता है।
5. प्रातिभ ज्ञान : यह एक प्रकार का आंतरिक प्रत्यक्ष ज्ञान है जिसके द्वारा तथ्यों के दर्शन से उसमें निहित सामान्य का ज्ञान हो जाता है। इसी के द्वारा आगमनात्मक सत्यों की उपलब्धि संभव मानी जाती है। किंतु सामान्य सत्य का ज्ञान विशिष्ट तथ्यों के प्रत्यक्ष ज्ञान पर निर्भर है। इसलिए प्रातिभ ज्ञान का दोनों से संबंध जुड़ता है। किंतु अरस्तू प्रतिभ ज्ञान को व्यावहारिक ज्ञान से भिन्न बताता है क्योंकि प्रातिभ ज्ञान का सामान्य सत्य से अधिक संबंध है और व्यावहारिक ज्ञान का विशिष्ट व्यक्तियों से।
मनुष्य के जीवन की पूर्णतः इन सभी की सहकारिता पर निर्भर है।
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