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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541
आईएसबीएन :9781610000000

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…


यूसोविअस और प्लूटार्क के अनुसार हेरादोतस को, उसके काम की मान्यता देते हुए एथेंस की असेंबली (एकलीसिया) ने आर्थिक अनुदान दिया। विद्वान इसे स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि, जैसा कि कहा जाता है, हेरादोतस ने एथेंस की नागरिकता प्राप्त करने का आवेदन किया था। जो नागरिकों के विशिष्टता-बोध के कारण 451 ई.पू. के बाद एक दुर्भल सम्मान माना जाता था। परंतु सत्य यह है कि असेंबली में मत-वैभिन्नय के कारण उसे नागरिकता नहीं मिल पाई। लेकिन नागरिकता और अनुदान दो भिन्न विषय थे। नागरिक न होने पर भी सार्वजनिक निधि से अनुदान मिलना संभव था और यह उसे इस कारण दिया जाता था कि वह अपने इतिहास का वाचन कर एथेंसवासियों को प्रसन्न कर देता था। 443 ई.पू. के आसपास वह कुछ समय के लिए एथेंस की कालोनी थूरियस चला गया। अरस्तू ‘थूरियस का हेरादोतस’ नामक अपनी पुस्तक में इस्तोरिया का हवाला देते हैं। वहाँ रहते हुए हेरादोतस ने अपने व्यक्तिगत अनुभव से दक्षिणी इटली के बारे में लिखा (V, 15, 99; VI, 127)। पेलोपोनीसोस युद्ध के प्रथम वर्षों की (यह युद्ध 27 वर्षों तक चला था) कुछ घटनाओं की वैयक्तिक जानकारी (V- 91, VII- 133, IX-73) से संकेत मिलता है कि वह एथेंस लौट आया होगा। ऐसी दशा में संभव है कि मकदूनिया दरबार का संरक्षण मिलने के बाद उसकी मृत्यु वहाँ हुई हो या वह थूरियस लौट गया हो और वहाँ अंतिम सांस ली हो। 430 ई.पू. के बाद इस्तोरिया में निश्चित रूप से कोई घटना नहीं लिखी गई है। सामान्यतः यह माना जाता है कि 60 वर्ष की आयु के आसपास उसकी मृत्यु हुई होगी।

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