जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
हर्मियस फिलिप से परसिया के विरुद्ध पत्र-व्यवहार करने के अपराध में पकड़ा गया था। धोखा देकर उसका वध कर दिया गया। इस घटना के बाद फिलिप को असोस की राजनीतिक स्थिति के बारे में कुछ भी पता न चला होगा क्योंकि षड्यंत्र की सूचना मिल जाने के कारण पारसीक राज्य ने असोस के सुरक्षात्मक नियंत्रण को कड़ा कर दिया था। अरस्तू हर्मियस का विश्वासपात्र था और वहीं से भागकर लेस्बोस पहुंचा था। फिलिप को हर्मियस की दुर्घटना के संबंध में अगर कुछ मालूम हो सकता था तो अरस्तू से ही। फिर अरस्तू के प्रति फिलिप की सहानुभूति इसलिए भी थी कि सम्राट के पक्ष में षड़यंत्र करने वाले हर्मियस से संबद्ध होने के कारण उसे भागना पड़ा था। किंतु प्रधान रूप से अरस्तू को सिकंदर की शिक्षा के निमित्त ही बुलाया गया था।
अरस्तू मकदूनिया पहुंच गया जहां उसका बचपन खेला था। मकदूनिया की राजधानी पैला के निकट इमेथिया प्रांत में मीजा स्थित राजकीय अकादमी का वह अध्यक्ष बना दिया गया। यहीं पहली बार जब अरस्तू की मुलाकात 13 वर्षीय सिकंदर से हुई तो लगा कि एक के पास संसार को विजित कर उस पर शासन करने की शक्ति थी तो दूसरे में नया संसार खोजकर उसे मानवीय मस्तिष्क के अधीन कर देने की।
स्कूल, जो एक बोर्डिंग स्कूल की तरह था, में प्रतिदिन पहले अरस्तू विद्यार्थियों को संबोधित करता फिर वे वनदेवी की वाटिका में बैठकर गुरु की शिक्षाओं पर विमर्श करते। आवश्यक होने पर पत्थर की विशाल कुर्सी पर बैठे अरस्तू के आसपास विद्यार्थी एकत्र हो जाते या उसके साथ छायादार पथों पर विचरण करते। सिकंदर के साथ संभ्रांत परिवार के बच्चे जैसे हेफेस्टन, टॉलमी और कैसेंडर पढ़ते थे जो ‘साथी’ के नाम से जाने जाते।
सभी विद्यार्थियों का गुरु के प्रति पूजा-भाव था, वे उनसे आलोकमय प्रेरणाकण ग्रहण करते। परंतु सिकंदर ने अपनी श्रद्धा को अरस्तू की बुद्धिमत्ता और ज्ञान का दास नहीं होने दिया। वह शील और विनय का दुष्ट उदाहरण था।
एक सुबह गुरु ने प्रश्न किया, ‘‘उस समय आप क्या करेंगे जब पूर्वजों की गद्दी पाकर राजा हो जाएंगे ?’’
एक विद्यार्थी ने संकोच के साथ कहा, ‘‘प्रत्येक संकट के समय मैं अपने गुरु से सलाह लूंगा।’’
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