लोगों की राय

लेख-निबंध >> लेख-आलेख

लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय


यह सुनकर सभी छात्र विस्मयविमूढ़ हो गए।

तभी एक व्यक्ति अंदर आया। उसने प्राचार्य के कान में कुछ कहा। प्राचार्य ने कोने में पड़ी मेज पर रखी एक प्लेट की ओर इशारा किया। आगंतुक मेज की ओर गया, प्लेट में रखे रुपयों में से गिनकर दो हजार लिए और प्रणाम करके चला गया। छात्रों को यह देखकर अति विस्मय हुआ कि जो अपने ऊपर जरूरत से ज्यादा एक पैसा तक नहीं खर्च करता वही हजारों रुपये इस तरह लुटा रहा है।

´´सर, ये कौन थे और...।´´ छात्रों ने जिज्ञासा कुलबुलाने लगी।

विद्यार्थियों की जिज्ञासा समझकर प्राचार्य ने बताया, ´´ये राष्ट्र को समर्पित एक व्यक्ति थे और राष्ट्रहित के लिए ही धन ले गए हैं। इस संबंध में अधिक कुछ न पूछना।´´

´´आपका सभी कुछ आश्चर्यपूर्ण है सर।´ एक छात्र ने साहस कर कहा।

´´तुम्हारी जिज्ञासाएं मैं समझ रहा हूं। मेरा जीवन आश्चर्यपूर्ण नहीं है, हां, औरों से कुछ भिन्न अवश्य है। इसका कारण मेरा यह विश्वास है कि ईश्वर ने जो गुण, प्रतिभा, उच्च शिक्षा, विद्या और धन दिया है वह सब उसका ही है। इसके अल्पतम अंश में अपना काम चलाकर, शेष सब ईश्वर यानी समाज को वापस कर देना उचित है।´´

छात्रों ने एक-दूसरे को देखा जैसे मूक मंत्रणा कर रहे हों। छात्र मुन्शी ने कहा, ´´सर, हम आपका विदाई समारोह आयोजित करना चाहते हैं। आपकी अनुमति...।

´´नहीं! मुझे यों ही जाने दो। तुम लोग नहीं जानते कि समाज के कार्य में लगे व्यक्ति के लिए राई भर सम्मान भी पहाड़ के बराबर अवरोध उत्पन्न करता है। फिर मेरा सिद्धांत है पर्दे के पीछे काम करना। मुझे चुपचाप जाने दो, मेरे बच्चो।´´ छात्र आज्ञा शिरोधार्य कर भारी मन लिए चले गए।

710 रु. प्रतिमाह की नौकरी छोड़ 70 रु. मासिक पर श्री अरविंद घोष नेशनल कालेज कलकत्ता (कोलकाता) में प्राचार्य के पद पर काम करते हुए राष्ट्र-सेवियों का गठन भी करने लगे। यही उनका मुख्य उद्देश्य था।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book