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लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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हमने इंसान को आपस में प्यार करते देखा। स्त्री-पुरुष के आलिंगन हमारी भावनाओं के लिये अर्थहीन थे, पर उस समय उनकी वह ´गूं-गूं´ की हमनें बहुत नकल की पर ´कूं-कूं´ से आगे नहीं बढ़ सके। आज भी यही शब्द-ध्वनि हमारे प्रेम प्रदर्शन का प्रतीक है। कोई भी जानवर प्यार की जीवंत अभिव्यक्ति हमारी तरह नहीं कर पाता। हमें लगा कि इंसान के प्रति प्रेम-प्रदर्शन के लिये सिर्फ ´कूं-कूं´ ही काफी नहीं है, अतः इसके पूरक के रूप में हम अपनी पूंछ भी हिलाने लगे। पूंछ हिलाना हमारे प्रेम-प्रदर्शन का प्रतीक है। अगर आपको हमारी बात का विश्वास न हो, तो अमेरिका के धन कुबेर श्री रॉकफेलर का कथन पढ़ लीजिए। वे हमारे स्वभाव के अच्छे जानकार थे। एक बार उन्होंने कहा था, ´´हम पैसे के बल पर अच्छे से अच्छा कुत्ता खरीद सकते हैं, परंतु संसार की सारी संपदा खर्च करके उसकी पूंछ नहीं हिलवा सकते। वह तो सिर्फ प्रेम से ही हिलती है।´´ श्वान-पालक हर व्यक्ति इस बात को जानता है।

हम अपने अंगों की हरकत से क्या कहना चाहते हैं यह हम स्वयं नहीं बता सकते! हां, वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया है। हर वैज्ञानिक शोध सामान्यतः सत्य के निकट होता है, ऐसा कहा जाता है। शोध का परिणाम यह आया है- जब हम किसी व्यक्ति को देखते ही पूंछ हिलाने लगें तो इसका अर्थ यह होता है कि हम उसे काटेंगे नहीं। यदि पूंछ बाईं ओर हिलती है तो यह हमारे मित्रवत् होने का संकेत होता है। दाईं ओर हिलती पूंछ मनुष्य को विश्वास दिलाती है कि हम उसका सम्मान कर रहे हैं। जब हम सामने आए व्यक्ति को देखकर खुश होते हैं तो हमारे कान खड़े हो जाते हैं। ऐसे में किसी को काटने का प्रश्न ही नहीं उठता।

´अक्ल बड़ी या भैंस´ इस मुहावरे का निहितार्थ होता है कि भैंस में कतई अक्ल नहीं होती। इसी बात को लेकर हम भैंस ताई का खूब मजाक उड़ाते, पर उन पर कोई असर नहीं पड़ता। वह खड़ी पगुराती रहतीं। बहरहाल अक्ल को लेकर हम पर आज तक कोई उंगली नहीं उठायी गई। इंसान ने हमें प्रषिक्षण दिया और हमने प्रषिक्षित होकर हैरतअंगेज कारनामें किए। नेत्रहीन स्वामी को मार्ग दिखाना; उसे पार्क, डाकघर, बैंक, शौचालय आदि ले जाना; उसे खतरों से सावधान करना हमने सीख लिया।

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