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लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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जहां तक मेरी जानकारी है इंसानों के सिर पर सींग नहीं पाए जाते। मुहावरों में ही सही, इंसान के सिर पर सींग की कल्पना विशेष गुणों की द्योतक है। ज्यादातर जानवरों के सिर पर सींग होते हैं, जिससे अक्सर वे लड़ने या मारने या धूल उड़ाने का काम लेते हैं। जिन जानवरों के सिर पर सींग नहीं होते वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की तरह बलशाली, खूंखार, तेज या चालाक माने जाते हैं। इस कोटि में गधा अपवाद है। लेकिन किसी जमाने में गधे के सिर पर भी सींग हुआ करते होंगें। किसी कारण से वे आजकल के भ्रष्ट प्रशासन में ईमानदारी की तरह गायब हो गए और सींग होने की सनद के रूप में ´गधे के सिर से सींग की तरह गायब´ होने वाली कहावत छोड़ गए जो आज भी वक्त जरूर पर काम आ रही है।

वैसे तो सिर सोचने समझने का संदूक होता है लेकिन इस काम के अलावा, शरीर के अन्य अंगों की तुलना में यह उसी तरह बहुत काम आता है जैसे चुनाव में मतदाता काम आते हैं। बाप-दादों की मौत पर हिंदुओं में कटाए तो सिर के बाल जाते हैं पर उसे ´सिर मुंड़ाना´ कहते हैं। बिना फेबीकोल लगाए लड़कियां आपस में सिर जोड़कर बैठ जाती हैं और उसी स्थिति में घंटों बातें करती रहती हैं। आदमी के वास्ते लोगों के सारे एहसान बेचारा सिर ही अपने उपर उठाता है। दुनिया के तमाम मूर्त या अमूर्त बोझ को सिर पर ही रखा जाता है। समस्याएं आने पर केवल सिर ही खपाया जाता है। सिर कसम खाने के काम भी आता है। और ´तुम्हारे सिर की कसम´ कहते ही ´सिर वाला´ आदमी दूसरे की बात के प्रति आश्वस्त हो जाता है। मुसीबतें आने पर आसमान भी सिर ही पर टूटता है जिसे बीबी और बच्चे अपनी जिदें पूरी करवाने के लिए अपने सिर पर उठा लेते हैं। सिर इतना मजबूत होता है कि मुसीबतों के पहाड़ टूटने पर भी यह सलामत बना रहता है। अक्सर इंसान पैरों से भागता है लेकिन कभी-कभी परिस्थिति अनुकूल न होने पर पैरों को सिर पर रखकर भागना पड़ता है।

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