लोगों की राय

लेख-निबंध >> लेख-आलेख

लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय


शरीर के अन्य अंगों की तरह सिर की सजावट के लिए कई प्रकार की टोपियां ईजाद की गईं। अपने-अपने समय में तुर्की टोपी, अकबरी टोपी, दुपल्ली टोपी, गोल टोपी सिर की शान बनी परंतु अंग्रेजों के ´हैट´ के सामने उतरती चली गई। हैट को गांधी टोपी ने पछाड़ा। जिन प्रदेशों में तेज हवांए चलती हैं वहां टोपी उड़ जाने के डर से सिर पर साफे या पगडियां बांधी जाती हैं। पगड़ियां भी तरह-तरह की होती हैं। हमारे देश में जितनी भी पगड़ियां प्रचलित हैं सच मानिए वे सभी सिर के लिए होती हैं। ऐसा लगता है पहले खाते-पीते सभी लोग सिर पर पगड़ी बांधते थे तभी दीन-हीन सुदामा को कृष्ण के महल के सामने देखकर प्रहरी कहता है- ´सीस पगा न झगा तन में...´। सिख समुदाय में सिर की पगड़ी धार्मिक भावना की प्रतीक बनकर अब अनिवार्य हो गई है। पहले राजवंशों में अपने सिर पर ताज रखने के लिए अपने-परायों के सिर काटने में भी गुरेज नहीं होता था।

स्कूटर व मोटर साइकिल चलाते समय संभावित दुर्घटना से सिर के अतिरिक्त किसी अन्य अंग की सुरक्षा का विचार आज तक किसी के सिर में नहीं आया। दुर्घटना से सिर की रक्षा के लिए हेलमेट पहनते हैं। क्रिकेट के मैदान में गेंद से विकिट की रक्षा करने के लिए जैसे हाथ में बल्ला होता है उसी तरह सिर की रक्षा के लिए सिर पर हेलमेट होता है। पूर्वकाल में लड़ाई के मैदान में जाते समय इसी प्रकार का हेलमेट यानी ´शिरस्त्राण´ धारण करके सिर की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती थी।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book