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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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बंदर और घड़ियाल

पौराणिक पुस्तकें पढ़-पढ़कर घड़ियाल को अपने करालमुख नाम से घिन हो गई। पत्नी की सहमति से उसने अपना नया नाम ´शंखमुख´ रख लिया। पत्नी स्वतः शंखमुखी हो गई।

गर्मी के दिनों में जब छोटे जल-जंतु प्रजनन के लिए सुरक्षित स्थानों पर चले जाते तो शंखमुख को अक्सर आधे पेट रहना पड़ता। ऐसी दशा में वह समुद्र के किनारे जामुन के एक पेड़ के नीचे पड़े-पड़े पंचतंत्र की कहानियां याद करता रहता।

जैसा कि पंचतत्र में लिखा था उसकी मित्रता रक्तमुख नामक एक बंदर से हो गई। रक्तमुख उसी जामुन के पेड़ पर रहता था। उसने पहले बंदर को अपना नया नाम बताया। बंदर ज्ञान का सागर था। उसने बताया कि शंखमुख का अर्थ घड़ियाल ही होता है। कपि ने आगे कहा, ´´खैर, नया नाम बनाए रखो, सुनने में अच्छा लगता है।´´

नए मित्र बंदर की सहृदयता देखकर शंखमुख ने अपना दर्द बताते हुए कहा कि वह इधर कई दिनों से शिकार के अभाव के कारण भरपेट भोजन नहीं कर पा रहा है।

शंखमुख की भूखजन्य व्यथा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बंदर ने कहा, ´´भाई, वैसे तो आपको जामुन खिलाने की बात ही पंचतंत्र में लिखी है परंतु मैं आपको आम भी खिलाऊंगा। इधर के पेड़ों की नीलामी नहीं हुई है। अतः हमारा ही राज रहेगा।´´

शंखमुख बंदर के दिए हुए फल खाता और घर जाते समय पत्नी के लिए भी ले जाता। जब शंखमुखी कई दिन मीठे जामुन खा चुकी तो एक रात उसने पति के प्रति बड़ा प्रेम प्रदर्शित करते हुए उससे पूछा, ´´प्रिय, यह स्वादिष्ट फल तुम कौन सी मंडी से लाते हो।´´

शंखमुख को आशंका हुई कि कहीं पत्नी ने पंचतंत्र न पढ़ रखा हो। अतः उसे सच बोलना पड़ा, ´´एक बंदर मेरा मित्र है, वही देता है।´´

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