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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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शरणस्थली

किसी जमाने में सांप के सुंदर पंखों वाली पूंछ हुआ करती थी। अपनी पूंछ पर इठलाता हुआ सांप मोर से कहता, ´´मेरी पूंछ के आगे तेरी पूंछ फीकी है।´´ मोर इस बात से चिढ़ जाता और सांप को धमकी देता, ´´घमंडी, मैं तुझे साबुत निगल जाऊंगा।´´ सांप यह सुनकर हंस देता और अपनी पूंछ हिलाने लगता क्योंकि वह जानता था कि पूंछ में पंखों के रहते मोर उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

उनका यह बैर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहा। नए जमाने में लोग सांप और मोर दोनों को मारने लगे। सरकार ने बंदिशें लगाईं तब कही जाकर शिकारी थमे। सांप और मोर की संख्या घटती गई पर उनके आपसी बैर में कोई कमी नहीं आई।

उसी जंगल में एक किसान का बेटा अपने जानवर चराने आता था। वह जानवरों को चरने छोड़ देता और पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजाता। उसकी बांसुरी की धुन पर मोर खूब नाचता। इस प्रकार संगीत के माध्यम से उन दोनो में दोस्ती हो गई।

एक दिन मोर ने कहा, ´´भइए, मेरे दिल में जन्म-जन्मांतर से एक कांटा गड़ रहा है, क्या तुम उसे निकाल सकते हो?´´

लड़के ने पूछा, ´´कैसा कांटा?´´

´´कांटा सांप की पूंछ का,´´ मोर ने दुखी होकर बताया। ´´इस जंगल में एक सांप रहता है। उसकी सुंदर-सी... अरे सुंदर क्या, यह समझो एक पूंछ है। उसे फैलाकर मेरी मोरनी पर डोरे डालता रहता है। मेरे ऊपर रोब झाड़ता है। अगर तुम उसकी पंखदार पूंछ काट दो तो मैं जीवन भर तुम्हारी बांसुरी की धुन पर नाचता रहूंगा।´´  

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