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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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चतुर्वेदी जी ने धमकी भरे स्वर में कहा, ´´हम मूंगफली वाले हैं?´´

दुकानदार ने चतुर्वेदी जी के कंधे पर लटके झोले की ओर इशारा करते हुए कहा, ´´तो का जा झोरा में हीरा जवाहरात बेचत हौ।´´

चतुर्वेदी जी इस स्थिति से परेशान हो उठे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे दुकानदार को कैसे विश्वास दिलाएं कि वे मूंगफली बेचने वाले नहीं हैं। मूंगफली उन्हें अपने प्रयोग के लिए चाहिए थी।

संयोग से उसी समय एक परिचित सज्जन आ निकले। उन्हाने चतुर्वेदी जी को देखते ही कहा, ´´दद्दा पालागन। हियंन कैसे?´´

चतुर्वेदी जी ने उन्हें बताया, ´´जि दुकानदार हमैं मूंगफली बेचन वारो समझ रओ है। जाय बताए देउ कि हम का हैं!´´

वे सज्जन दुकानदार को जानते थे। उन्होंने समझाया, ´´अरे तू दद्दा को नई जानत है? जे हैं हमारे दद्दा बनारसी दास चौबे। जे बड़े भारी लेखक हैं। इन्ने ढ़ेर सारी किताबे लिखी हैं और इनैं सारी दुनिया जानत है। तू तौ ´अमर उजाला´ अखबार पढ़त है न। वामैं इनके लेख और चिट्ठी छपत हैं। तू अपने शहर के इतने बड़े आदमी को नहीं जानत। हद्द है भई।´´

दुकानदार ने पूरी बात सुनने के बाद कहा, ´´तो ´अमर उजाला´ मयं इनके लेख और चिट्ठी छपत है।´´

उस सज्जन ने इसकी पुष्टि की।

दुकानदार ने अपने सहायक को बुलाया और उसे आदेश दिया, ´´कल्ल से ´अमर उजाला´ बंद करि देउ। वामै तो भइया मूंगफली बेचन वालन की चिट्ठी छपत हैं।´´

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