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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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चारों ओर गडबडी़ देखकर विनोबा रुक गए। उन्होंने कहा, ´´आप लोग शांत रहिए। अगर कोई नहीं चाहता तो मैं बिना दर्शन किए ही चला जाऊंगा।´´ शोर और कोलाहल बढ़ गया। विनोबा दर्शन किए बिना जाने लगे। इतने में धक्का-मुक्की शुरू हो गइ्र्र। विनोबा के पांच-सात सहयोगियों ने उनके चारों ओर सुरक्षा-घेरा डाल दिया। तभी मुक्कों की बौछारें पड़ने लगीं। सहयोगी शांतिपूर्वक मार खाते रहे। कुछ पंडों ने एक महिला का गला दबाने का प्रयास किया। इसी बीच विनोबा के बाएं कान पर एक जोर का घूंसा पड़ा, इससे उनका वह कान हमेशा के लिए बहरा हो गया। सहयोगियों ने मार बरदाश्त कर विनोबा को बचाया और उन्हें बाहर निकाल लाए। विनोबा तो किसी तरह सकुशल पड़ाव तक पहुंचे पर कुछ सहयोगियों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। कुछ लोगों को तो इस मार ने हमेशा के लिए बीमार कर दिया।

सारे देश में खलबली मच गई। पंडों की निंदा होने लगी। सरकार ने कुछ पंडों को पकड़ा। दूसरे दिन विनोबा ने अपील की, ´´कल मैं भगवान के दर्शनों के लिए गया था। दर्शन तो नहीं हुए पर भगवान का स्पर्श प्राप्त हुआ। जिन्होंने मारपीट की उन्होंने अज्ञानवश ऐसा किया है इसलिए उन्हें किसी प्रकार का दंड नहीं दिया जाना चाहिए। मेरे सहयोगियों ने उस समय शांति और निर्वैर भाव बनाए रखा यह ईश्वर की बड़ी कृपा है।

´´25 साल पहले इसी जगह गांधी जी पर पत्थरों की बारिश हुई थी,´´ इस घटना का उल्लेख करते हुए विनोबा ने कहा, ´´मैं जिसके चरणों का दास हूं उन्हें जो भाग्य हासिल हुआ, वही मुझे भी प्राप्त हुआ, इस बात से मुझे धन्यता का अनुभव हो रहा है।´´

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