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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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जानवरों की तरह ज्यादातर लोग भी घास के लिए आतुर रहते हैं। किसी बड़े नेता या अफसर से लिफ्ट न मिलने पर कहा जाता है कि भई वह तो घास भी नहीं डालता। यहां ´डालता´ शब्द उल्लेखनीय है। जो घास ´डाली´ जाती है वह पहले से ही प्राप्त की हुई होती है। अवसरवादी लोग दूसरे के परिश्रम से प्राप्त ऊंचाइयों की ´घास´ चाहते हैं।

मानव के अस्तित्व में आने से पहले ही घास इस संसार में मौजूद थी। यह 10 करोड़ वर्ष पुरानी मानी गई है। परंतु 2005 में यह धारणा तब बदल गई जब मध्य प्रदेश के विसद्दुरा क्षेत्र में ´सोएपोड´ नामक डायनासोर के गोबर के जीवाश्म पाए गए। साढ़े चौदह वर्ष पुराने ये डायनासोर घास खाते थे। उस समय कई फुट ऊंची घास लहराती होगी। मांसाहारी डायनासोर इन्हीं घास के जंगलों में छिपकर शाकाहारी डायनासोरों का शिकार करते होंगे। इससे घास की उम्र का अनुमान आसानी से किया जा सकता है। मानव द्वारा घास के प्रयोग का पहला साक्ष्य तैत्तरीय संहिता के प्रथम कांड के सातवें प्रपाठक के चौथे अनुच्छेद में मिलता है जिसमें कहा गया है- बर्हिषा वै प्रजापतिः प्रजा असृजत अर्थात बर्हिस नामक घास बिछाकर उस पर प्रजापति ने प्रजा उत्पन्न की। आर्यों के वन्य पूर्वजों के पास ओढ़ने-बिछाने के आज जैसे गद्दे आदि नहीं थे। अतः वे बर्हिस नामक घास अग्निकुंड के इर्द-गिर्द बिछाते थे तथा वहीं शयन और समागम करते थे। मानव का सभ्यता की ओर बढ़ा हुआ पहला चरण ´चरागाह युग´ कहलाता है। चरागाह घास का पुंजीभूत रूप है। इसी के सहारे मानव अपने संकीर्ण संसार को छोड़कर विशाल विश्व के परिचय क्षेत्र में आया। इस प्रकार घास सभ्यता की जननी है।

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