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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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धनुर्विद्या कौशल में मुख्य रूप से प्रयुक्त होने के कारण एकलव्य के अंगूठे को बलिदान होना पड़ा। वह इतिहास में अमर हो गया। पर ढाका की मलमल बनाने वाले हजारों कारीगरों के अंगूठे अंग्रेजों की क्रूरता की भेंट चढ़ गए और इतिहास आज भी उनके नामों से अपरिचित है। उन बेचारे अंगूठों के मूक बलिदान अलिखित ही रह गए।

अंगूठा हमारे दैनिक व्यवहार की संस्कृति बन गया है। यात्रा पर किसी को विदा करते समय मुट्ठी बांधकर अंगूठा तान देते हैं- इसे शुभ माना जाता है। जब किसी का मजाक उड़ाना हो तो उसे हिलता हुआ अंगूठा दिखाकर ´टिलीलीली´ कहते हैं। अंगूठे का सबसे ज्यादा प्रयोग नेता करते हैं। वोट मिलने के बाद, अगले पांच वर्ष तक (या जब तक सरकार चले)। वे जनता को सिर्फ अंगूठा दिखाते रहते हैं, कोई काम नहीं करते लेकिन नया चुनाव आते ही नेता जनता का अंगूठा चूसने लगते हैं। भूखे शिशु द्वारा अंगूठा चूसना एक सामान्य-सी बात है।

टाइपराइटर और कम्प्यूटर में ´स्पेसबार´ से शब्दों के बीच जगह देने का काम लिया जाता है। यदि दो शब्दों के बीच जगह न दी जाय तो शब्दों की भीड़ से उनके वास्तविक अर्थ खोजना भी कठिन होगा। शब्दों की भीड़ छांटकर उन्हें सही विन्यास देने का काम ´स्पेसबार´ के माध्यम से सिर्फ अंगूठे द्वारा किया जाता है।

आध्यात्म के क्षेत्र में अंगूठे की उपस्थिति पाई जाती है। गुरुओं द्वारा शिष्यों पर शक्तिपात यानी अपनी आध्यात्मिक शक्ति के एक अंश का शिष्य में आधान करने की बात सुनी जाती है। यह क्रिया गुरु अपने अंगूठे द्वारा शिष्य के मस्तक पर दबाव बनाकर करता है।

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