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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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इंसान का सिर

सिर मनुष्य के शरीर का ऊपरी हिस्सा होता है। मनुष्य शरीर के दो छोर होते हैं- सिर और पैर का तलवा। परंपरानुसार सिर पितरों का प्रतीक होता है और तलवे भावी संतति का। मानव के अन्य अंगों की अपेक्षा सिर सबसे मजबूत होता है। यही कारण है कि आदमी के मरने पर हिंदुओं में उसका शव जलाते समय सिर्फ सिर को ही बांस या लकड़ी से फोड़ना पड़ता है ताकि अन्य अंगों की तरह वह भी खाक में तब्दील हो सके। मानव-चिंतन, चेतना और खुराफात का केंद्र सिर ही होता है।

सिर हमारा वह अंग है जो झुकता नहीं। यह झुकने की चीज नहीं। इसका भार संभालने वाली गरदन ही झुकती है सिर नहीं। लेकिन लोग इस बात को नहीं मानते। मानते होते तो मध्यकाल में राजपूत वीर सिर न झुकाने के नाम पर हजारों गरदनें नहीं कटवा देते। खैर अपना-अपना सिर है और अपनी-अपनी गरदन।

कर्म का अधिकार सिर्फ मानव के पास होने पर भी मानव जाति देवों से सदा पीछे रही है। आज तक इसका कारण कोई ऋषि-मुनि नहीं जान पाया। अनुसंधान में सिर खपाने पर अब पता चला है कि मानव का देवताओं से पिछडेपन का कारण और कोई नहीं, खुद ´सिर´ है। कोई मनुष्य कभी दो सिर वाला तक नहीं हुआ। उधर देवों ने अपने नेताओं के तीन, चार या पांच सिर तक रखने का जुगाड़ कर लिया। इसके अलावा देव चाहें तो किसी अन्य प्राणी का सिर भी अपने धड़ पर लिए घूम सकते हैं और गणेश कहला सकते हैं। जब देवासुर संग्राम चलने लगे तो दानवों ने एक नेता ऐसा पैदा किया जिसके दस सिर थे। उसने देवों के भी सिर झुका दिए। दस से अधिक सिर वाला आज तक कोई प्राणी नहीं हुआ।

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