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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781610000000

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...

अज्ञान की गुफा

भौतिक संसार की वास्तविकता को नकारने, जैसा सुकरात अक्सर करता है, और परिणामों को निर्दिष्ट करने के लिए विद्वानों ने ‘प्लेटोवाद’ शब्द गढ़ा है। कई संवादों में, मुख्यतः रिपब्लिक में, सुकरात, जानने योग्य और वास्तविकता के संबंध में अंतज्र्ञान के विपरीत बात करता है जबकि अधिकांश लोग इंद्रिय-अनुभव को वास्तविक मानते हैं। सुकरात यह कहकर उनका उपहास करता है कि वे यह समझते हैं कि वास्तविकता के नाम पर उनके हाथ में कुछ आ जाएगा। थियोतितोस में वह कहता है कि ऐसे लोग बिना काव्य के प्रसन्न रहते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे लोग, उस दैवी प्रेरणा के बिना, जिससे उन्हें उन जैसे अन्य लोगों को वास्तविकता के संबंध में अंतर्दृष्टि तक पहुंच होती है, जीवन जीते हैं।

सुकरात का यह कथन कि इंद्रियों का उपभोग करने वालों को वास्तविकता का ज्ञान नहीं हो सकता उसे सामान्य जन के और साधारण बोध के विरुद्ध खड़ा कर देता है। सुकरात कहता है कि जो अपनी आंखों से देखता है वह अंधा है। यह विचार गुफा के रूपक से आया है जो विभाजित रेखा के वर्णन में और स्पष्टता से सामने आता है। रिपब्लिक के प्रारंभ में गुफा का रूपक एक विरोधाभाषी वाद-विवाद की प्रक्रिया है जिसमें सुकरात तर्क करता है कि अदृश्य संसार अधिक बोधगम्य है और दृश्य संसार बहुत अस्पष्ट है, अतः कम से कम ज्ञेय है। रिपब्लिक में सुकरात कहता है कि जो इंद्रियों के जगमगाते संसार को अच्छा और वास्तविक मानते हैं वे दया के पात्र होकर अज्ञानता और बुराई की गुफा में रह रहे हैं। सुकरात स्वीकार करता है कि जो लोग अज्ञान की गुफा से बाहर आ जाते हैं, उन्हें उच्चता प्राप्त करने के लिए भयानक संघर्ष करना पड़ता है परंतु जब वे वापस जाते हैं या अन्य लोगों को उठाने के लिए सहायता करते हैं वे घृणा और उपहास के पात्र बनते हैं।

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