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जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781610000000

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


देश को मिले-सड़क, सराय व किले

शेरशाह एक महान भवन-सड़क-दुर्ग निर्माता था। उसके द्वारा बनवाई गई चार मुख्य बड़ी सड़कें (राजमार्ग) प्रसिद्ध हैं। पहली-सोनार गांव (बंगाल के सागर तट पर स्थित) से आगरा, दिल्ली, लाहौर होती हुई रोहतास (पंजाब स्थित) तक; दूसरी-आगरा से बुरहानपुर (दक्षिण स्थित) तक; तीसरी-आगरा से जोधपुर होती हुई चित्तौड़ तक और चैथी-लाहौर से मुल्तान तक। इसके अतिरिक्त अन्य तमाम छोटी बड़ी सड़कें बनवाई गईं थी जो विभिन्न नगरों को एक दूसरे को परस्पर जोड़ती थीं।

उसने, अशोक महान् की तरह, सड़कों के दोनों ओर छायादार और फलदार वृक्ष लगवाए जिससे यात्री उनके तले विश्राम कर सकें। पानी की व्यवस्था के लिए कुएं खुदवाए गए। यदि किसी यात्री की मार्ग मंक अचानक मृत्यु हो जाती तो उसके माल-असबाव को उसके उत्तराधिकारियों को दे दिया जाता या, उनका पता न चलने पर, निर्धनों के सहातार्थ बने सरकारी कोष में जमा कर दिया जाता।

प्रत्येक मार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए प्रति चार मील के फासले पर सराय बनवाई गई। प्रत्येक सराय में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए पृथक आवास और पृथक भोजन की व्यवस्था थी। सराय के द्वार पर यात्रियों के लिए पेय जल से भरे घड़े रखे रहते थे। हिन्दू यात्रियों के लिए स्नानादि हेतु गर्म या ठंडे जल की व्यवस्था करने, बिस्तर उपलब्ध कराने, उनके घोड़ों या ऊंटों को चारा देने के लिए हिन्दू सेवक और भोजन कराने के लिए ब्राह्मण रसोइए मौजूद रहते थे। यात्रियों के सामान की देखभाल के लिए चौकीदार रहते थे। भोजन सहित सभी सुविधाएं निशुल्क थीं। सरकारी कर्मचारियों के कार्यों पर नियंत्रण रखने के लिए एक शहना (नायक) हर सराय में नियुक्त रहता। प्रत्येक सराय के मध्य में एक कुंआ और एक पक्की मस्ज़िद बनाई गई थी।

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