जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
फरीद ने बड़ी निष्ठा से नए स्वामी की सेवा की। एक बार शिकार के दौरान उसने तलवार के एक ही वार से शेर का काम तमाम कर अपने स्वामी के प्राण बचाए। बहर खान ने फरीद को ‘शेरखान’ की उपाधि से विभूषित किया। उसे नायब बनाकर अपने शहजादे जलाल खान का संरक्षक और उस्ताद नियुक्त किया। कुछ महीनों बाद बहर खान की मृत्यु हो गई। उसकी बीबी दूदू शहजादे की अभिभावक बनी। शेरखान उसका कृपा-पात्र बना रहा। कुछ समय बाद बेगम दूदू की भी मृत्यु हो गई तो शेरशान के रुतबे में और अधिक वृद्धि हो गई।
शेरखान छुट्टी लेकर अपनी जागीर देखने चला गया। इसी बीच हुमाऊं ने आक्रमण कर कन्नौज से बलिया तक के क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। ऐसी हालत में, शेरखान के लौटने में देरी होती देखकर जलाल खान को उस पर शंका होने लगी। शेरखान के शत्रु मुहम्मद खान सूर ने मौका देखकर सुल्तान के कान भरने शुरू कर दिए और कहा कि उसकी जागीर उसके भाई सुलेमान को दे दी जाए। सुल्तान ने शेरखान की जागीर छीनना तो मुनासिब नहीं समझा पर शेरखान और सुलेमान के बीच का झगड़ा निपटाने के लिए मुहम्मद खां सूर को पंच बनाकर भेज दिया। शेरखान ने जब पंच फैसले वाली बात सुनी तो उसने बड़ा कड़ा रुख अपनाया। इससे चिड़कर मुहम्मद खान सूर ने उस पर हमला कर दिया। इस समय शेरखान सैन्य-शक्ति से सम्पन्न नहीं था अतः उसने, भाई निजाम की सलाह पर, सुल्तान जुनैद बारलस का आश्रय लेने का निश्चय किया। उसने बनारस जाकर पहले सुल्तान जुनैद बारलस की सेवा में अपनी ओर से आदमी भेजा और रक्षा का वचन मिल जाने पर जौनपुर पहुंचा और मुगल सूबेदार का आश्रय ग्रहण किया। यह घटना 1527 ई. के आरंभ की है।
खनवा के युद्ध के बाद सुल्तान जुनैद बारलस बाबर से मिलने आगरा गया। साथ में शेरखान भी था। वहां सुल्तान जुनैद ने अपने भाई और बाबर के मंत्री मीर खलीफा से कहर शेरखान को बाबर की सेना में भर्ती करा दिया। शेरखान बाबर की सेना में लगभग सवा वर्ष रहा। सन् 1528 के मध्य में जब बाबर ने पूर्वी प्रांतों पर आक्रमण किया तब शेरखान उसके साथ था। इसी आक्रमण में शेरखान को पुरस्कार स्वरूप उसकी जायदाद मिल गई। साथ ही सहसराम ने 45 मील पश्चिम में चैंध और दूसरे सरकारी परगने भी प्राप्त हो गए। इसके बाद उसने इधर उधर बिखरे अफगानों को एकत्र कर चैंध के पुराने शासक मुहम्मद खान सूर को, जो बाबर के हमले के समय अपनी जागीर चैंध छोड़कर भाग गया था, शेरखान ने अपने पक्ष में मिला लिया।
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