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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781610000000

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


इस अध्ययन के उपरांत सुकरात यह समझ पाए कि यूनानी विचारक शून्य में विचार करने वाले लोग नहीं थे। अपने समय की सामान्य जनता पर उनका व्यापक प्रभाव रहा होगा। इनमें से कुछ दार्शनिक तो सार्वजनिक पदों पर आसीन थे।

पौने दो सौ वर्ष का दर्शन-काल पार कर सुकरात अपने समय में आ गए थे। एक नई विचारधारा सामने आई जब अनक्साग्रोरस (460 ई0पू0) ने प्रश्न उठाया कि जड़ परमाणुओं में स्वतः गति कैसे हो सकती है! उन्होंने विश्व के मूल में नोअस (बुद्धितत्व) को सक्रिय होना बताया। सुकरात अनक्सागोरस से प्रभावित हुए। बड़ी व्यग्रता से उन्होंने अनक्सागोरस की एक पुस्तक पढ़ डाली जिसमें मन को सारी व्यवस्था करने वाला बताया गया था। सुकरात इससे प्रभावित नहीं हुए और शीघ्र ही किताब से ऊब गए। सुकरात ने अनक्सागोरस के शिष्य आर्कीलस से दर्शन की प्रारंभिक शिक्षा ली। परंतु आगे नहीं बढ़ पाए। सुकरात को दोनों के विचार नास्तिक लगे क्योंकि अनक्सागोरस सूर्य को पत्थर का और चन्द्र को मिट्टी का बना बताते थे। एथेंस में नास्तिक विचारों के प्रति सहिष्णुता नहीं थी। अतः अनक्सागोरस को, राजाध्यक्ष का मित्र होते हुए भी, एथेंस से भागना पड़ा। अनक्सागोरस के शिष्य होने के नाते सुकरात पर नास्तिकता का आरोप लगाया गया कि वे सूर्य और चंद्र को देवता नहीं मानते।

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