लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 0

पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


सीफॉलस ने तत्परता से कहा, ‘‘स्वयं दौलत। इसी के कारण वह उदार, ईमानदार और धर्मनिष्ठ बन सका है।’’

सुकरात ने फिर प्रश्न दागा, ‘‘तुम धर्म का क्या अर्थ लेते हो?’’

सीफॉलस धर्म की विभिन्न परिभाषाएं प्रस्तुत करता है। सुकरात प्रत्येक का खंडन करते जाते हैं।

अंततः असंयत होकर थेरसोमेकस चिल्ला उठता है, ‘‘सुकरात, तुम कितने मूर्ख हो ! तुम असभ्य की भांति सबको नीचा दिखाने की कोशिश क्यों कर रहे हो? मैं कहता हूं कि यदि तुम कुछ जानना चाहते हो तो प्रश्नों की झड़ी न लगाकर उत्तर भी दो। दूसरों को नीचा दिखाने का मिथ्या गर्व न करो, क्योंकि बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो प्रश्न करना तो जानते हैं किंतु उत्तर नहीं दे सकते।’’

परंतु सुकरात प्रतिक्रोध नहीं करते। बिना उत्तेजित हुए या बिना बुरा माने वे बहस करने वाले के भीतर से एक सुंदर मूर्ति की भांति वांछित परिणाम निकलवा लेते। उन्होंने मूर्ति बनाने की कला व्यर्थ ही नहीं सीखी थी।

सुकरात इस बात के लिए बदनाम थे कि वे प्रश्न तो पूछते थे पर उत्तर नहीं देते थे और यही कहते थे कि जिस विषय पर वे प्रश्न पूछ रहे हैं उसका उन्हें ज्ञान नहीं है। उनका विख्यात कथन था कि ‘‘मैं सिर्फ यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता।’’ गीता में कहा गया है कि अपूर्णता की सजग अनुभूति इस बात का द्योतक है कि आत्मा सचेत है और जब तक वह सचेत है सुधर सकती है। सुकरात के उपर्युक्त कथन का परंपरागत निर्वचन है कि सुकरात की बुद्धिमत्ता अपने अज्ञान को जानने तक सीमित थी। आधुनिक विचार इस निर्वचन से सहमत नहीं है, भले ही सुकरात के दर्शन में कई विरोधाभास थे, जैसे- कोई आदमी बुराई नहीं चाहता, कोई भी व्यक्ति गलती जान बूझकर नहीं करता, सभी प्रकार के सदाचार ही ज्ञान हैं और प्रसन्नता के लिए सदाचार पर्याप्त है।

सुकरात ने कभी बुद्धिमान होने का दावा नहीं किया। हां, इसे पाने के लिए ‘बुद्धिमत्ता से प्यार’ यानी ‘दर्शन’ की अवधारणाओं से संबंधित मार्ग का अनुसरण अवश्य किया। जिस प्रकार पानी बिना भेाजन के नहीं पचता उसी प्रकार दर्शन के बिना ज्ञान को नहीं समझा जा सकता। यह विवाद का विषय है कि क्या सुकरात विश्वास करते थे कि मानव वास्तव में बुद्धिमान बन सकता है! एक ओर तो उन्होंने मानवीय अज्ञान और आदर्श ज्ञान के बीच स्पष्ट रेखा खींची है दूसरी ओर, प्लेटो के अनुसार, बुद्धिमत्ता प्राप्त करने की तरीके बताए हैं ।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book