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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781610000000

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


परिवार के लिए एक चिंताजनक स्थिति यह थी कि बेटा अचानक अपने आप में खो जाता था। इस स्थिति के लिए कोई समय या स्थान निश्चित नहीं था। देहभान भूलकर निश्चेष्ट-सा ध्यानमग्न हो जाता। समाधिस्थ हो जाने पर उन्हें अपनी अंतरात्मा से दिव्य संकेत मिलते थे। ये दिव्य संकेत अक्सर उन्हें अकरणीय कार्यों से रोकते। वह जब चाहें इन संकेतों की आवाज सुन सकते थे। कोई महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले ये संकेत ही मार्गदर्शक बनते। यदि उन्हें कोई आवाज़ सुनाई देती हो इसका तात्पर्य वे यह लगाते कि उन्हें वह कार्य नहीं करना है। दिव्य वाणी ने ही उन्हें राजनीति में भाग नहीं लेने दिया था। अपने जीवन के सर्वाधिक अवांक्षित समय का सामना करने जब वे न्यायालय में उपस्थित हुए थे तब भी उन्होंने दिव्य संकेत ग्रहण किया था कि अब मृत्यु को स्वीकारना शुभ होगा। इस कारण वे पूरे मुकदमें को दौरान अविचलित बने रहे, अपने बचाव में ठोस तर्क प्रस्तुत नहीं किए, मित्र वकील द्वारा तैयार भाषण बोलने को तैयार नहीं हुए, ऐसे तर्क दिए कि जूरी अप्रसन्न हो गई और पक्ष में वोट दिए जाने वाले सदस्यों में से काफी लोग विपक्ष में आ गए, देश छोड़कर बाहर चले जाने का मित्रों का प्रस्ताव नकार दिया और हंसते-हंसते जहर का प्याला पीकर संसार के पहले शहीद दर्शनिक बन गए। उनके दिव्य संकेतों ने जहां उन्हें अलौकिकता से मंडित किया, जीवन का सच्चा मार्ग दिखाया वहीं वे उनके लिए अभिशाप भी बन गए।

सुकरात के ध्यानस्थ हो जाने और दिव्य संदेश प्राप्त करने की बात पूरे एथेंस में प्रसिद्ध थी। सुकरात के विरोधियों ने इस स्थिति से लाभ उठाया। दो आरोपों में से एक आरोप यह जड़ दिया कि उन्होंने नए देवता का निर्माण किया है और उसी के ध्यान में मग्न रहते हैं।

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