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वयस्क किस्से 2

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1215
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम के कुछ और किस्से

चन्दा- मेरी पिंक वाली नेल पालिश की कसम! तभी तो मैं हवा में उड़ रही हूँ कि पानी पर चल रही हूँ, मुझे खुद नहीं पता चल रहा। पर सब्र तो रख, मेरे दिमाग में सब गडमड हो रहा है और मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा कि इतनी जल्दी और ऐसे मुझे चूहा मिल जायेगा। मुझे हमेशा लगता था कि तू इस मामले में मुझसे ज्यादा होशियार है, इसलिए पहले तेरा नंबर लगेगा और फिर तुझसे ही यह सब सीख लूँगी। लेकिन कल शाम को अचानक ऐसा कुछ हुआ कि सब कुछ अपने-आप होता ही चला गया।

सुनीता-अब बता भी।
चन्दा- कल शाम लगभग साढ़े पाँच या छह बजे हमारे ही मोहल्ले में रहने वाली एक आँटी, जो कि माँ से अक्सर गप्पें लड़ाने आ जाती हैं, वो मेरे घर आई हुईं थी। आते ही माँ से बोलीं, "दीदी, कुछ पापड़ बेलने हैं, चन्दा को मेरी मदद में मदद करने मेरे घर भेज जा सकती हो? मेरा मन तो बिलकुल नहीं था, लेकिन मेरी सुनता कौन है। माँ ने हुक्म सुना दिया कि तू आंटी के घर जाकर उनका काम करवा दे। मुझे फालतू के काम के लिए बुलाए जाने के कारण आंटी पर बड़ा गुस्सा आया। मैंने मन ही मन सोचा, मुझे जबरदस्ती बुला रही हैं, इनका काम बनाने की जगह बिगाड़ दूँगी, ताकि आगे से फालतू की बेगार न करवाएँ।

सुनीता ने समझदारी से उसे देखते हुए सिर हिलाकर हामी भरी।
चन्दा आगे कहने लगी-पता पिछले महीने जो रोज वाला पाउडर तूने दिया था उसकी महक बड़ी अच्छी है। कल पता चला।
सुनीता बेसब्री से बोली-फिर आगे क्या हुआ?
चन्दा आगे बोली-आंटी तो बिलकुल गले ही पड़ गई थी। मुझे अपने साथ ही ले जाकर मानी।

रास्ते में आंटी ने पूछा, "तुमने कभी जोड़ा खाया है?"
मैंने पलट कर उनसे वापस पूछा, "जोड़ा? ये क्या होता है? कोई फल है?"
आंटी बोली, "आज पापड़ बनाते समय तुझे खिलाती हूँ।"
मैंने सोचा कि चलो कोई नई चीज खाने को मिलेगी।आंटी का घर कोई ज्यादा दूर तो है नहीं, तो जैसे ही हम घर के सामने पहुँचे आंटी बोली, "सामने से नहीं, पीछे से चलते हैं।"

मैंने सोचा जिधर से भी चलो, मुझे क्या फर्क पड़ता है। हम पिछले दरवाजे से अंदर घुसे। अंदर घुसते ही आंटी ने मेरे ओठों पर उंगली रखी और चुपचाप रहने का इशारा किया। मैं चौंक गई, अब क्या हुआ! मेरा हाथ पकड़ कर आंटी पिछले वाले कमरे के अंदर गई और फिर बीच की दीवार में बनी एक खिड़की से बाहर के कमरे में देखने लगी। वहाँ एक लकड़ी के पुराने सोफे पर दूसरी ओर मुँह करके कोई बैठा हुआ था।

आंटी ने फुसफुसा कर मुझसे कहा, "तुमने किसी लड़के को नंगा देखा है?"
मेरी तो आँखे ही बाहर आ गईं, बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से आवाज निकलने को हुई तो आंटी ने फिर मेरे होठों पर उंगली रख दी।

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