श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से 2 वयस्क किस्से 2मस्तराम मस्त
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मस्तराम के कुछ और किस्से
सुनीता की निगाह कुर्ते के अंदर चन्दा के उरोजों पर गई और वहाँ से पलट कर अपने उरोजों पर चली गई।
चन्दा ने सुनीता को और सुनीता ने चन्दा को देखा, लेकिन दोनों में से किसी ने एक दूसरे से कुछ कहा नहीं।
कुछ देर बाद सुनीता बोली-"फिर!"
चन्दा बोली-"लड़का घूम कर के सामने फिर से आ गया। इस बीच आंटी ने उसकी कमर के दोनों ओर हाथ लगाकर उसकी जीन्स को नीचे खिसका दिया। जीन्स के साथ-साथ उसका जाँघिया भी खिंचा चला आया था, जिससे एक जवान चूहा बाहर निकलने की कोशिश में था। मुझे उसकी एक झलक ही मिली कि आंटी ने केवल जाँघिया फिर से ऊपर कर दिया।
सुनीता बोली-"तूने उसे सच में देखा, चल झूठी! मुझे बना रही है।"
चन्दा बोली- "सच्ची!" उसने आगे कहा।
आंटी ने जाँघिये को फिर से ऊपर किया और सफाई से केवल उसकी जीन्स नीचे तक उतार दी। आंटी उसके साथ खेल कर रही थी। आंटी ने अपनी छातियाँ आगे झुका कर उसके और पास कर दीं। वह बेचैन होने लगा था। मुझे लगा मेरे गाल और कान एकदन गरम हो गये थे। मैंने अपने गाल को छूकर देखा तो पाया कि वह वास्तव में गरम हो गया। मेरा हाथ गाल से उतर कर कुर्ते में गया और मैंने दायें हाथ से अपना बायां उरोज सहलाना शुरू किया और बायें हाथ से सलवार खिसकाते हुए चड्ढी के अंदर डाल दिया और अपने आप को धीरे-धीरे सहलाने लगी।
आंटी की साड़ी नीचे खिसक गई थी और उसकी मांसल भुजाएँ और बड़े-बड़े उरोज लड़के के हाथों को उलझाए हुए थे।
आंटी ने उसके जाँघिये को सामने से नीचे दबाया तो वह कसमसाया- आंटी ने बायें हाथ से जाँघिया दबाए हुए बड़े प्यार से उसके जाँघिए के अंदर झाँका और अपना दायाँ हाथ डालकर बाहर निकाला तो एक हल्के गेहुएँ रंग का चूहा उसके हाथ में था। लड़का आंटी की तरफ था, इसलिए दरवाजे से मुझे तिरछी तरफ से दिख रहा था, इसलिए बिलकुल साफ नहीं दिख रहा था। बस हल्की सी झलक मिल रही थी। हाँ, मुझे यह तो मालूम ही था कि वहाँ क्या हो रहा है, इसलिए बाकी का मैं अन्दाजा लगा रही थी।
सुनीता ने राहत की साँस ली-"अच्छा तो तुम यही कर पाईं!"
चन्दा बोली-"अरे आगे तो सुन!"
सुनीता हताशा और जलन भरी निगाहों से उसे देखती हुई बोली-"हाँ, सुना।"
चन्दा को कुछ होश नही था, वह तो अपनी धुन में बताये जा रही थी।
चन्दा आगे बोली-मुझे तो साइड से उसकी नंगी कमर दिखी। हाय क्या कमर है! और लड़के का दायाँ पिछवाड़ा भी दिखा। पता है लड़को का पिछवाड़ा हमारी तरह गोल नहीं होता, बल्कि सपाट और मस्त तना हुआ होता है। मेरा मन कर रहा था कि मैं भागकर जाऊँ और जोर से उसे बाहों में भींच लूँ।
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