लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 1220
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि वह कातर आँखों से प्रकाश को देख रही थी। अभी तक वह अधिकांशतः नीचे लेटती थी और प्रकाश ऊपर होता था, इसलिए उसे बिना कुछ कहे सब कुछ मिल जाता था। प्रकाश के कामांग को दोनो हाथों में थामे हुए उसने प्रकाश की ओर देखा और जैसे उसकी स्वीकृति माँगी। प्रकाश अधखुली आँखों से उसके उरोजों से खेलने में व्यस्त था। कामिनी ने अपनी कमर को थोड़ा उठाया और दोनो हाथों में थामे हुए प्रकाश के कामांग को सधे हुए हाथों से पहले अपने कामांग के मुहाने पर रख दिया। उसके शरीर से निकली चिकनाई ने प्रकाश के कामांग का स्वागत किया।

कामिनी ने उसी तरह ऊपर उठे हुए प्रकाश के कामांग को अपने कामांग का रास्ता अपनी हथेलियों का सहारा लेकर दिखा दिया। आज की रात प्रकाश को फाइव स्टार सेवाएँ मिल रहीं थी और उसे इस मामले में कोई शिकायत नहीं थी।  

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book