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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
वाक्य के घटक
सरल वाक्य में क्रिया अपने समापिका क्रिया के रूप में अवश्य होती है, इस
प्रकार सरलतम वाक्य का प्रमुखतम घटक क्रिया है। क्रिया के साथ
कर्ता अर्थात् उस क्रिया को करने वाला हो, यह आवश्यक ही है। इस प्रकार लघुतम
सरल वाक्य में दो घटक (1) क्रिया और (2) कर्ता अवश्य होते हैं।
अध्याय 10 में क्रिया के प्रकार के अंतर्गत यह बताया था कि क्रिया
अकर्मक और सकर्मक होती है। अकर्मक और सकर्मक में अपूर्ण अकर्मक
(कर्तृपूरकांक्षी) और अपूर्ण सकर्मक (कर्मपूरकांक्षी) उपभेद भी है, और सकर्मक
(पूर्ण सकर्मक) का एक उपभेज द्विकर्मक होता है। इस प्रकार सरल वाक्य में
स्थित क्रिया की प्रकृति के अनुसार वाक्य में निम्नलिखित घटक हो सकते हैं:
(पूर्ण) अकर्मक क्रिया के साथ – कर्ता, क्रिया (चिड़िया उड़ती है।)
अपूर्ण अकर्मक क्रिया के साथ – कर्ता, कर्तृपूरक, क्रिया (रमेश
डाक्टर/बीमार है।)
(पूर्ण सामान्य सकर्मक क्रिया के साथ – कर्ता, कर्म, क्रिया (रसीद
फल खाता है।)
पूर्ण द्विकर्मक क्रिया के साथ – कर्ता, कर्म1, क्रिया2, क्रिया
(राधा ने ऊषा को साड़ी दी।)
अपूर्ण सकर्मक क्रिया के साथ – कर्ता, कर्म, कर्मपूरक, क्रिया
(जैकब ने अहमद को अपना साथी चुना।)
ऊपर दिए घटक सरल वाक्य के अनिवार्य घटक कहे जाते हैं।
इन अनिवार्य घटकों के अलावा सरल वाक्य के कुछ ऐसे घटक आते हैं, जो ऐच्छिक
घटक कहे जाते हैं। इनके आने से हमारी बात और अधिक स्पष्ट हो जाती है,
इनके न आने से कुछ अष्पटता बनी रहती है और इन्हें रखना वक्ता की इच्छा पर
निर्भर होता है: किन्तु व्याकरणिक रचना की दृष्टि से इनके न आने पर कोई
अधूरापन नहीं रहता है, जैसा कि अनिवार्य घटकों के न आने से। उदाहरणार्थ
निम्नलिखित वाक्य देखिए:
मोहन श्याम के लिए किताब लाया है।
वह बीमारी के कारण आज स्कूल नहीं जाएगा।
मोहन श्याम के साथ कल सुबह दिल्ली जाएगा।
यहाँ श्याम के लिए, बीमारी के कारण, श्याम के साथ कल सुबह, ऐच्छिक
घटक हैं। (इनके हटा देने के बाद भी वाक्य में कोई अधूरापन नहीं रहताष
जबकि किताब (कर्म), लाया है (क्रिया), वह (कर्ता) आदि के हटाते ही शेष रचना
सरल वाक्य नहीं रह पाएगी। ये ऐच्छिक घटक होते हैं:
1. करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण कारक में स्थित घटक
2. संबंधबोधक अव्ययों से बने घटक
3. क्रियाविशेषण घटक
ऊपर कर्ता का अनिवार्य घटक के रूप में उल्लेख हुआ है। कर्ता के पास
प्रायः क्रिया आरंभ करने या न करने का सामर्थ्य होता है। किंतु बहुत-सी ऐसी
स्थितियाँ होती हैं, जिनमें आपकी इच्छा या अनिच्छा की कोई भूमिका नहीं है।
आपको खाँसी आ रही है। या आपको ज्वर है। या आपको जंगल में अचानक शेर मिल गया।
या आपको किसी पर गुस्सा आ गया। यहाँ कहीं भी आप क्रिया करने वाले नहीं है।
गहराई से देखा जाए तो आप अनुभावक (अनुभव करने वाले) हैं। इस अनुभावक
कर्ता का हिंदी में विशेष महत्व है, क्योंकि इस प्रकार के कर्ता
(उद्देश्य स्थित कर्ता) के साध हिंदी में को लगता है। अनुभावक
कर्ता मुख्तया निम्नलिखित स्थितियों में मिलता है :
शारीरिक अनुभूतियाँ – मोहन को ज्वर/खाँसी/... आ रहा/रही है।
मनोभावात्मक अनुभूतियाँ – मोहन को गुस्सा आ रहा है।
बौद्धिक अनुभूतियाँ – मोहन को ऐसा लगा कि भूचाल आ गया।
मोहन को मालूम है कि ....
श्याम को गिनती आती है।
रुचिपरक क्रियाएँ – श्याम को मिठाई अच्छी लगती है।
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