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उपयोगी हिंदी व्याकरण

भारतीय साहित्य संग्रह

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 12546
आईएसबीएन :1234567890

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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

उपसर्ग


उपसर्ग शब्द संस्कृत व्याकरण का तकनीकी शब्द है। संस्कृति में बाइस उपसर्ग हैं और उनसे संस्कृत में बड़ी मात्रा में शब्द बने हैं। इस यौगिक शब्दों में कुछ तो इतने अधिक प्रचलित हैं कि सामान्यतः बोलने वाले के ध्यान में भी नहीं आता कि इस शब्द में उपसर्ग लगा है और यौगिक है। जैसे, उद्योग, परीक्षा, उत्साह, अनुभव, अत्यंत, अभ्यास आदि।

आगे अब संस्कृत उपसर्गों से बने शब्दों की रचना दी जा रही है।

संस्कृत के उपसर्ग


संस्कृत में बाईस उपसर्ग हैं। इनसे बने हिंदी में बहुत प्रचलित शब्द उदाहरण के रूप में यहाँ दिये जा रहे हैं:

अति मात्रा, मान आदि के विचार से अधिक, नियम, मर्यादा, सीमा से बढ़ा, साधारण से बहुत अधिक बढ़कर अत्यंत, अत्युत्त्म, अत्याचार आदि। बहुत अधिक का भाव प्रकट करने के लिए नए शब्द भी बना करते हैं, जैसे, अतिकोमल, अति अभिमानी।
अधि ऊपर, ऊँचा, प्रधान,अधिक, संबंध में, साधारण अथवा मध्यम से अधिक अधिकार, अध्यक्ष, अध्यादेश आदि। कुछ नवनिर्मित शब्द जहाँ अधि का प्रयोग Sur, Super के लिए हैं — अधिशुल्क, अधि-कर आदि।
अनु पीछे चलता हुआ, साथ चलता हुआ, समीप, अधीनस्थ, निम्न, कम महत्व का
अनुभव, अनुकूल, अनुरोध, अनुशासन, अनुकरण, अनुवाद आदि। कुछ नवनिर्मित शब्दों में अनु का प्रयोग संस्कृत अनुज, अनुचर की तरह, बाद में आने वाला गौण या कम महत्व की वस्तु के लिए किया गया है – विभाग-अनुभाग।
अप अलग या दूर, अनुचित, निंदनीय, नीचे या पीछे, रहित या हीन, आकस्मिक, गुप्त, दिशा, प्रकार
अपयश, अपकार, अपमान, अपशब्द, अपव्यय आदि। यह अनुचित बुरा आदि का अर्थ देता है। कुछ नवनिर्मित शब्दों में अप (दूरस्थ) के लिए प्रयुक्त हुआ है, जैसे अपकेंद्र।
अभि आगे, सामने, मात्रा या मान की अधिकता, अच्छी तरह से, किसी प्रकार की विशेषता या श्रेष्ठता का सूचक
अभिमान, अभ्यास, अभ्यागत, अभियान आदि। आधुनिक लेखन में वैशिष्ट्य दिखाने के लिए इसका प्रयोग मिलता है — रक्षा, अभिभाषण, अभिरक्षा आदि।
अव अनुचित, दूषित या बुरा, नीचे की ओर, कमी, घटाव या ह्रास, विशेष रूप से अवतार, अवसर, अवनति, अवगुण, अवकाश आदि। नवनिर्मित शब्दों में कई बार इसका प्रयोग sub के लिए हुआ है, जैसे — चेतन-अचेतन, अवमूल्यन।
तक या पर्यंत, आदि से अंत तक, सब जगह व्याप्त, कुछ या थोड़ा, किसी अवधि या सीमा के आगे-पीछे या बाहर भी
आजन्म, आमरण, आगमन, आदान, आकर्षण, आरक्षण आदि।
उछ् पूरा करना, बाँधना, त्यागना, संक्रमण
उत्थान, उत्कर्ष, उद्गम, उन्नति, उद्योग, उच्चारण, उल्लंघन, उद्घाटन आदि।
उप निकट, पास, ओर, समय अथवा आकाश की निरंतरता
उपवन, उपकार, उपदेश, उपस्थित, उपग्रह आदि की तरह उपमंत्री, उपसचिव आदि।
दुस/दुर अवगुण, बुरा, कठिन, नीचा, कभी-कभी होने वाला
दुस्साहस, दुस्साध्य, दुष्कर, दुर्लभ, दुर्गुण, दुराचार, दुर्दशा, दुर्घटना आदि।
नित/निर बार-बार, अलग, दूर, बाहर, रहित, हीन
निश्चल, निष्काम, निस्संदेह, निर्जन, निरपराध, निरादर, निर्दोष, निर्यात आदि।
नि नीचे, पीछे, अंदर, निषेध, अंर्तनिहित
निवास, नियुक्ति, निबंध, निषेध, नियम, निवारण आदि।
परा दूरी पर, परे, आगे की ओर, विपरीतता
पराजय, पराभव, पराक्रम, परामर्श, आदि (पराधीन समास है)।
परि आस-पास या चारों ओर, अच्छी या पूरी तरह अथवा हर तरह, अतिरिक्त रूप से, बहुत अधिक या बहुत जोरों से, दोष दिखलाते हुए, किसी विशिष्ट क्रम या नियम से
परिचय, परिणाम, परीक्षा, पर्यटन, परिवर्तन, परिक्रमा, परिधि आदि।
प्र आगे, अग्रिम, तुरंत, अतिशय, पूर्ण होने या करने का भाव, उस जैसा, सादृश
प्रबल, प्रसिद्धि, प्रयत्न, प्रगति, प्रचार, प्रस्थान, प्राचार्य, प्राध्यापक आदि।
प्रति किसी काम या बात के आधार, परिणाम या फलस्वरूप होनेवाला, विपरीत, विरोधी या समानान्तर पक्ष या स्थिति में होनेवाला, किसी के अनुकरण पर अथवा अनुरूप बनने या होनेवाला, आगे या सामने, अच्छी तरह। भली भाँति, चारों ओर अथवा चारों ओर से, पहले या पूर्व से, साधारण या सामान्य, पुनः या फिर, किसी के अधीन, सहायक अथवा स्थानापन्न रूप से काम करनेवाला, समान प्रतिकूल, प्रतिध्वनि, प्रत्यक्ष, प्रतिष्ठा, प्रतिनिधि आदि।
वि अलगाव या पार्थक्य, विपरीतता, अंशीकरण, अन्तर, क्रम या विन्यास, अधिकता, अनेक रूपता या विचित्रता, निषेध या राहित्य, परिवर्तन
वियोग, विदेश, विनय, विजय, विनाश, विज्ञान, विपक्ष, विमुख आदि।
सम् (सं) हर समय एक सा, जुड़ने का भाव, एक जैसा फैलने का भाव, पूर्णत्व, सब, समस्त
सम्मान, सम्मेलन, संशोधन, संपूर्ण, संयम, संगम, संकल्प, सम्मुख, संतोष आदि।
सु अच्छा, उत्तम, मनोहर या सुन्दर, अच्छी या पूरी तरह से, सरलतापूर्वक या सहज में, बहुत अधिक, मांगलिक या शुभ, उचित और अधिकारी
सुलभ, सुगम, सुबोध, सुदूर, स्वच्छ, सुशिक्षित, स्वागत आदि।


संस्कृत के उपसर्ग अपि से संस्कृत में ही एकाध शब्द, जैसे — अपिधान (=”ढक्कन”) मिलते हैं। संस्कृत व्याकरण की समास-रचना में प्रायः प्रयुक्त कुछ शब्द/शब्दांश जो समास के पहले भाग में आते थे, बहुत अधिक प्रचलित होने के कारण उपसर्गवत् (उपसर्ग-समान) दिखाई पड़ते हैं और वैसे ही माने जाते हैं। उदाहरणार्थ:

अकाल, अज्ञान, अभाव, अहिंसा, अनुचित, अनेक, अनादि, आदि।
कु कुकर्म, कुपात्र, कुरूप, कुयोग आदि।
सु सुकर्म, सुपात्र, सुपुत्र आदि।
सत् सज्जन, सत्पुरुष, सद्गति, सदाचार आदि।
पुनर पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, पुनरुत्थान
अधः अधोमुखी, अधस्तल, अधोपतन, अधोगति
अंतर/अंतः अंतरार्ष्ट्रीय, अंतर्जातीय, अंतर्मुखी
बहिस्/बहिर बहिष्कार, बहिर्गमन, बहिर्मुखी
स्व स्वराज्य, स्वतेज, स्वतंत्र, स्वचालित (मशीन)
स्वयं स्वयंसेवक, स्वयंवर, स्वयंचालित (मशीन)
पुरा पुरातत्त्व, पुरावृत्त, पुरातन
प्राग प्राक्कथन, प्राग्वैदिक, प्रागैतिहासिक
चिर चिरस्थायी, चिरजीवी, चिरकुमार आदि।
सह सहोदर, सहपाठी, सहमति, सहगान, सहकारिता
सम समकालिक

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