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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
वर्ग (4) स्त्रीलिंग इकारांत, ईकारांत और – इया प्रत्यायांत से भिन्न
विभक्ति | एकवचन | बहुवचन |
मूल (परसर्गसहित) | बात, बहन, माता, वस्तु, बहू (Ø) | नदियाँ, विधियाँ, बुढ़ियाँ (-ओं) |
तिर्यक् (परसर्गसहित) | बात, बहन, माता, वस्तु, बहू (Ø) | नदियाँ, विधियाँ, बुढ़ियाँ (-ओं) |
संबोधन | हे बहन! | हे बहनो (-ओ) |
रूप-रचना में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाता है:
1. विभक्ति प्रत्यय आकारांत शब्दों में (चाहे वे पुंलिंग हो, चाहे
स्त्रीलिंग) मात्रा के रूप में (जैसे, रें, रों लगते हैं। जैसे, घर, घरों,
बहन-बहनें-बहनों)।
2. विभक्ति प्रत्यय आकारांत पुंलिंग शब्दों में मात्रा के रूप में लगते हैं।
जैसे घोड़े – घोड़ों। इया प्रत्यायांत स्त्रीलिंग शब्दों के साथ भी यही
स्थिति है।
3. विभक्ति प्रत्यय आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में बाद में अपने मूलरूप (-एँ,
-ओं) में लगते हैं। जैसे — माताएँ-माताओं।
विभक्ति प्रत्यय अकारांत/आकारांत से भिन्न शब्दों के साथ अपने मूल रूप (-एँ,
-ओ) में लगते हैं, किंतु इकारांत और अकारांत शब्द हस्व इकारांत और उकारांत हो
जाते हैं तथा इकारांत/ईकारांत के बाद प्रत्ययों के पहले – य का आगम भी होता
है —
(पुं.) गुरुओं, डाकुओं; माली + ओं —> मालि + य् + ओं = मालियों
(स्त्री) वस्तुओं बहुओं; नदी + ओं —> नदि + य् + ओं = नदियों।
संबोधन बहुवचन में ‘-ओ’ लगता है। प्रायः ‘ओं’ लगा देते हैं, जो कि अशुद्ध है।
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