लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण

शिव पुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


विप्रगण! मैं अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार संक्षेप से भगवन्नामों की महिमा का कुछ वर्णन करता हूँ। तुम सब लोग प्रेमपूर्वक सुनो। यह नाम-माहात्म्य समस्त पापों को हर लेनेवाला सर्वोत्तम साधन है। 'शिव' इस नामरूपी दावानल से महान् पातकरूपी पर्वत अनायास ही भस्म हो जाता है - यह सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है। शौनक! पापमूलक जो नाना प्रकार के दुःख हैं, वे एकमात्र शिवनाम (भगवन्नाम) से ही नष्ट होनेवाले हैं। दूसरे साधनों से सम्पूर्ण यत्न करने पर भी पूर्णतया नष्ट नहीं होते हैं। जो मनुष्य इस भूतल पर सदा भगवान् शिव के नामों के जप में ही लगा हुआ है वह वेदों का ज्ञाता है, वह पुण्यात्मा है वह धन्यवाद का पात्र है तथा वह विद्वान् माना गया है। मुने! जिनका शिवनाम-जप में विश्वास है, उनके द्वारा आचरित नाना प्रकार के धर्म तत्काल फल देने के लिये उत्सुक हो जाते हैं। महर्षे! भगवान् शिव के नाम से जितने पाप नष्ट होते हैं उतने पाप मनुष्य इस भूतलपर कर नहीं सकते।

भवन्ति विविधा धर्मास्तेषां सद्य: फलोन्मुखा।
येषां भवति विश्वास: शिवनामजपे मुने।।

पातकानि विनश्यन्ति यावन्ति शिवनामत:।
भुवि तावन्ति पापानि क्रियन्ते न नरैर्मुने।।

(शि० पु० वि० २३। २६-२७)

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book