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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण

शिव पुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


गिरिजा बोलीं- बेटी! तुम्हारा बिन्दुग नामवाला पति बड़ा पापी था। उसका अन्तःकरण बड़ा ही दूषित था। वेश्या का उपभोग करनेवाला वह महामूढ़ मरने के बाद नरक में पड़ा अगणित वर्षों तक नरक में नाना प्रकार के दुःख भोगकर वह पापात्मा अपने शेष पाप को भोगने के लिये विन्ध्यपर्वत पर पिशाच हुआ है। इस समय वह पिशाच-अवस्था में ही है और नाना प्रकार के क्लेश उठा रहा है। वह दुष्ट वहीं वायु पीकर रहता और सदा सब प्रकार के कष्ट सहता है।

सूतजी बोले- शौनक! गौरीदेवी की यह बात सुनकर उत्तम व्रत का पालन करनेवाली चंचुला उस समय पति के महान् दुःख से दुःखी हो गयी। फिर मन को स्थिर करके उस ब्राह्मणपत्नी ने व्यथित हृदय से महेश्वरी को प्रणाम करके पुन: पूछा।

चंचुला बोली- महेश्वरि! महादेवि! मुझ पर कृपा कीजिये और दूषित कर्म करनेवाले मेरे उस दुष्ट पति का अब उद्धार कर दीजिये। देवि! कुत्सित बुद्धिवाले मेरे उस पापात्मा पति को किस उपाय से उत्तम गति प्राप्त हो सकती है, यह शीघ्र बताइये। आपको नमस्कार है।

पार्वती ने कहा- तुम्हारा पति यदि शिव-पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो सारी दुर्गति को पार करके वह उत्तमगति का भागी हो सकता है।

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