गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण शिव पुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
शिवपुराण के श्रवण की विधि तथा श्रोताओं के पालन करने योग्य नियमों का वर्णन
शौनकजी कहते हैं- महाप्राज्ञ व्यासशिष्य सूतजी! आपको नमस्कार है। आप धन्य हैं, शिवभक्तों में श्रेष्ठ हैं। आपके महान् गुण वर्णन करने योग्य हैं। अब आप कल्याणमय शिवपुराण के श्रवण की विधि बतलाइये, जिससे सभी श्रोताओं को सम्पूर्ण उत्तम फल की प्राप्ति हो सके।
सूतजी ने कहा- मुने शौनक! अब मैं तुम्हें सम्पूर्ण फल की प्राप्ति के लिये शिव- पुराण के श्रवण की विधि बता रहा हूँ। पहले किसी ज्योतिषी को बुलाकर दान- मानसे संतुष्ट करके अपने सहयोगी लोगों के साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधा के कथा की समाप्ति होने के उद्देश्य से शुद्ध मुहूर्त का अनुसंधान कराये और प्रयत्नपूर्वक देश-देश में स्थान-स्थान पर यह संदेश भेजे कि 'हमारे यहाँ शिवपुराण की कथा होनेवाली है। अपने कल्याण की इच्छा रखनेवाले लोगों को उसे सुनने के लिये अवश्य पधारना चाहिये।' कुछ लोग भगवान् श्रीहरि की कथा से बहुत दूर पड़ गये हैं। कितने ही स्त्री, शूद्र आदि भगवान् शंकर के कथा- कीर्तन से वंचित रहते हैं। उन सबको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। देश-देश में जो भगवान् शिव के भक्त हों तथा शिवकथा के कीर्तन और श्रवण के लिये उत्सुक हों, उन सबको आदरपूर्वक बुलवाना चाहिये और आये हुए लोगों का सब प्रकार से आदर-सत्कार करना चाहिये। शिवमन्दिर में, तीर्थ में, वनप्रान्त में अशवा घर में शिवपुराण की कथा सुनने के लिये उत्तम स्थान का निर्माण करना चाहिये। केले के खम्भों से सुशोभित एक ऊँचा कथामण्डप तैयार कराये। उसे सब ओर फल-पुष्प आदि से तथा सुन्दर चँदोवे से अलंकृत करे और चारों ओर ध्वजा-पताका लगाकर तरह-तरह के सामानों से सजाकर सुन्दर शोभा सम्पन्न बना दे। भगवान् शिव के प्रति सब प्रकार से उत्तम भक्ति करनी चाहिये। वही सब तरह से आनन्द का विधान करनेवाली है। परमात्मा भगवान् शंकर के लिये दिव्य आसन का निर्माण करना चाहिये तथा कथावाचक के लिये भी एक ऐसा दिव्य आसन बनाना चाहिये, जो उनके लिये सुखद हो सके। मुने! नियमपूर्वक कथा सुननेवाले श्रोताओं के लिये भी यथायोग्य सुन्दर स्थानों की व्यवस्था करनी चाहिये। अन्य लोगों के लिये साधारण स्थान ही रखने चाहिये। जिसके मुख से निकली हुई वाणी देहधारियों के लिये कामधेनु के समान अभीष्ट फल देनेवाली होती है उस पुराणवेत्ता विद्वान्वक्ता के प्रति तुच्छबुद्धि कभी नहीं करनी चाहिये। संसार में जन्म तथा गुणों के कारण बहुत-से गुरु होते हैं। परंतु उन सबमें पुराणों का ज्ञाता विद्वान् ही परम गुरु माना गया है। पुराणवेत्ता पवित्र, दक्ष, शान्त, ईर्ष्या पर विजय पानेवाला, साधु और दयालु होना चाहिये। ऐसा प्रवचन- कुशल विद्वान् इस पुण्यमयी कथा को कहे। सूर्योदय से आरम्भ करके साढ़े तीन पहर तक उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् पुरुष को शिवपुराण- की कथा सम्यक् रीति से बाँचनी चाहिये। मध्याह्नकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिये, जिससे कथा-कीर्तन से अवकाश पाकर लोग मल-मूत्र का त्याग कर सकें।
|