गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण शिव पुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
महर्षे! इस तरह शिवपुराण की कथा के पाठ एवं श्रवण-सम्बन्धी यज्ञोत्सव की समाप्ति होने पर श्रोताओं को भक्ति एवं प्रयत्नपूर्वक भगवान् शिव की पूजा की भांति पुराणपुस्तक की भी पूजा करनी चाहिये। तदनन्तर विधिपूर्वक वक्ता का भी पूजन करना आवश्यक है। पुस्तक को आच्छादित करने के लिये नवीन एवं सुन्दर बस्त्र बनावे और उसे बाँधने के लिये दृढ़ एवं दिव्य डोरी लगावे। फिर उसका विधिवत् पूजन करे। मुनिश्रेष्ठ! इस प्रकार महान् उत्सव के साथ पुस्तक और वक्ता की विधिवत् पूजा करके वक्ता की सहायता के लिये स्थापित हुए पण्डित का भी उसी के अनुसार धन आदि के द्वारा उससे कुछ ही कम सत्कार करे। वहाँ आये हुए ब्राह्मणों को अन्न-धन आदि का दान करे। साथ ही गीत, वाद्य और नृत्य आदि के द्वारा महान् उत्सव रचाये। मुने! यदि श्रोता विरक्त हो तो उसके लिये कथासमाप्ति के दिन विशेषरूप से उस गीता का पाठ करना चाहिये, जिसे श्रीरामचन्द्रजी के प्रति भगवान् शिव ने कहा था। यदि श्रोता गृहस्थ हो तो उस बुद्धिमान् को उस श्रवणकर्म की शान्ति के लिये शुद्ध हविष्य के द्वारा होम करना चाहिये। मुने! रुद्रसंहिता के प्रत्येक श्लोक द्वारा होम करना उचित है अथवा गायत्री-मन्त्र से होम करना चाहिये; क्योंकि वास्तव में यह पुराण गायत्रीमय ही है। अथवा शिवपंचाक्षर मूलमन्त्र से हवन करना उचित है। होम करने की शक्ति न हो तो विद्वान् पुरुष यथाशक्ति हवनीय हविष्य का ब्राह्मण को दान करे। न्यूनातिरिक्ततारूप दोष की शान्ति के लिये भक्तिपूर्वक शिवसहस्रनाम का पाठ अथवा श्रवण करे। इससे सब कुछ सफल होता है इसमें संशय नहीं है; क्योंकि तीनों लोकों में उससे बढ़कर कोई वस्तु नहीं है। कथा श्रवण सम्बन्धी व्रत की पूर्णता की सिद्धि के लिये ग्यारह ब्राह्मणों को मधु- मिश्रित खीर भोजन कराये और उन्हें दक्षिणा दे। मुने! यदि शक्ति हो तो तीन तोले सोने का एक सुन्दर सिंहासन बनवाये और उस पर उत्तम अक्षरों में लिखी अथवा लिखायी हुई शिवपुराण की पोथी विधिपूर्वक स्थापित करे। तत्पश्चात् पुरुष उसकी आवाहन आदि विविध उपचारों से पूजा करके दक्षिणा चढ़ाये। फिर जितेन्द्रिय आचार्य का वस्त्र, आभूषण एवं गन्ध आदि से पूजन करके दक्षिणासहित वह पुस्तक उन्हें समर्पित कर दे। उत्तम बुद्धिवाला श्रोता इस प्रकार भगवान् शिव के संतोष के लिये पुस्तक का दान करे। शौनक! इस पुराण के उस दान के प्रभाव से भगवान् शिव का अनुग्रह पाकर पुरुष भवबन्धन से मुक्त हो जाता है। इस तरह विधि-विधान का पालन करने पर श्रीसम्पन्न शिवपुराण सम्पूर्ण फल को देनेवाला तथा भोग और मोक्ष का दाता होता है।
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