धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
धनाधीश कुबेर
धनाधीश कुबेर पृथ्वी पर जितना भी धन है, उन सबके स्वामी हैं और उत्तर दिशा के लोकपाल हैं। कैलास पर्वत के निकट उनकी अलकापुरी है जहां वे अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजमान हैं। 'वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुबेर की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्रों में महर्षि पुलस्त्य का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। वे बड़े तपस्वी और गुणवान थे। पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा थे। विश्रवा का उत्तम आचरण देखकर महामुनि भरद्वाज ने अपनी कन्या इलविला का विवाह विश्रवा से कर दिया था। इलविला के गर्भ से विश्रवा के यहां एक बालक का जन्म हुआ। उस बालक का नाम वैश्रवण रखा गया। उन्होंने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए वन में जाकर कठोर तपस्या की।
वैश्रवण की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन देकर वर मांगने को कहा। वैश्रवण उन्हें प्रणाम कर बोले, "प्रपितामह ! मेरा विचार लोक रक्षा करने का है, इसलिए लोकपाल बनना चाहता हूं। ब्रह्मा ने अपने प्रपौत्र वैश्रवण को लोकपाल बनाने के साथ-साथ अक्षय निधियों का स्वामी भी बना दिया और सवारी करने के लिए दिव्य पुष्पक विमान प्रदान किया। निधियों के स्वामी बनने पर वैश्रवण 'धनाधीश कुबेर' के नाम से विख्यात हुए।
ब्रह्मा जी से मनचाहा वर प्राप्त करके कुबेर अपने पिता के आश्रम में लौट आए। दक्षिण में त्रिकूट पर्वत पर मनोहारी लंकापुरी थी जहां राक्षस निवास करते थे। किंतु भगवान विष्णु के भय से राक्षस लंकापुरी छोड़कर पाताल लोक में जा बसे थे। लंकापुरी को रिक्त देखकर मुनिवर विश्रवा ने अपने पुत्र कुबेर को वहां निवास करने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा से कुबेर यक्षों सहित लंकापुरी में निवास करने लगे। समय-समय पर वे पुष्पक विमान से अपने माता-पिता से मिलने आया करते थे। कुबेर की शक्ति और वैभव देखकर राक्षस जलते थे। इसलिए उन्होंने षड्यंत्र के तहत असुर पुत्री कैकसी का विवाह वैश्रवण (कुबेर) के पिता मुनिवर विश्रवा से करा दिया।
कैकसी से रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म हुआ। तीनों भाइयों ने हजारों वर्ष घोर तपस्या करके अभिलषित वर प्राप्त किए। विभीषण भगवान की भक्ति में मग्न रहते थे किंतु रावण और कुंभकर्ण वर प्राप्त करने के बाद मदोन्मत्त रहते थे। अवसर देखकर उन्हें उनके नाना ने कुबेर के खिलाफ युद्ध के लिए भड़काया। बलोन्मत्त रावण ने लंका पर चढ़ाई करके बलपूर्वक कुबेर से लंका का राज्य और पुष्पक विमान छीन लिया। तब से राक्षसों के साथ रावण लंका में राज्य करने लगा। कुबेर अपने पिता की आज्ञा से उत्तर दिशा में हिमालय पर अलकापुरी में जाकर रहने लगे।
यक्षपति कुबेर के दो पुत्र हैं-नलकूबर और मणिग्रीव। देवर्षि नारद के शाप से वे दोनों वृक्ष बन गए। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें शापमुक्त किया था। शापमुक्त होने पर नलकूबर और मणिग्रीव अपने पिता कुबेर के पास ही रहते हैं। कुबेर की कृपा से ही मनुष्य को भूगर्भ स्थित धन प्राप्त होता है। वे मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। प्रत्येक यज्ञ के अंत में वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है।
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