धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
देव-सेनापति स्कंद
दानवी वरांगी के पुत्र तारकासुर का ऐसा आतंक था कि उसका सामना करने की हिम्मत देव जाति के किसी भी व्यक्ति में नहीं थी। ऐसी स्थिति में स्कंद को सेनापति नियुक्त किया गया। अभिषेक के समय सभी देवी-देवताओं ने उन्हें अपने आयुध और एक-एक गुण भेंट किए। स्कंद ने अपने पराक्रम से असुरों को परास्त किया और अपने भाले से तारकासुर का वध किया।
महाकवि कालिदास के 'कुमार संभव' में देव-सेनापति स्कंद के जन्म की गाथा विस्तार से दी गई है। गंगा की लहरों पर प्राप्त होने के कारण ये गांगेय हैं।
और कृत्तिकाओं का स्तनपान करने के कारण कार्तिकेय' भी कहलाए। इनमें शिव का तेज था। जब क्रौंच पर्वत ने दक्षिण में जाते समय महर्षि अगस्त्य का मार्ग रोका था तब क्रौंच का मान-मर्दन कार्तिकेय ने ही किया था।
पुराणों में वर्णन है कि तारकासुर का वध करने के बाद स्कंद उद्दंड हो गए और देव कन्याओं से छेड़छाड़ करने लगे। इससे तंग आकर कन्याओं की माताएं एकत्र होकर मां पार्वती के पास गईं। पार्वती ने स्कंद को समझाया कि सभी नारियों में मेरा प्रतिरूप देखा करो। तब से स्कंद ने नारीमात्र को पूज्य मान लिया। इनकी पत्नी का नाम देवसेना है और इनके ध्वज पर मयूर अंकित है। 'महाभारत' में इनके गुह, शिखिवाहन, स्वामी, षडानन, अग्निपुत्र आदि नाम गिनाए गए हैं। तमिल काव्य ग्रंथों में ये गुरुजन और सुब्रह्मण्यम हैं।
यौधेय गणराज्य ने कार्तिकेय को अपना इष्टदेव माना था और कनिष्क ने अपने सिक्कों पर कार्तिकेय को अंकित किया था। कार्तिकेय की प्रतिमाएं भारत में ही नहीं; नेपाल, श्रीलंका, जापान, प्रायद्वीप, चंपा, कंबोज, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और चीन में भी मिली हैं। शिव पंचायतन में शिवपुत्र और गणेश के भाई के रूप में ये भारत के गांव-गांव में पूजे जाते हैं। 'गीता' में सेनानीनामहं स्कंदः कहकर कार्तिकेय के पराक्रम का स्मरण किया जाता है।
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