धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
शताक्षी देवी
‘शताक्षी' शब्द का अर्थ है-सौ आंखों वाली। सौ आंखों द्वारा जिनकी अनुपम शोभा होती है, वे शताक्षी देवी जगत की स्वामिनी हैं। ब्रह्म उनका स्वरूप है। वे लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके हाथों में भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। वे करुणा की सागर हैं और संपूर्ण जगत की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। पंचकोश के भीतर उन देवी का निवास है। भगवती शताक्षी के प्राकट्य की कथा इस प्रकार है-
प्राचीन समय की बात है। दुर्गम नाम का एक दैत्य था। उसकी आकृति बड़ी भयंकर थी। वह स्वर्ग पर कब्जा करना चाहता था किंतु देवताओं के पास वेदों का बल था। अत: वह उन्हें परास्त नहीं कर सकता था। इसलिए उसने वेदों को नष्ट करने की इच्छा से हिमालय पर जाकर तप करना आरंभ कर दिया।
दुर्गम दैत्य एक हजार वर्षों तक केवल वायु पीकर ही प्रजापति ब्रह्मा जी का ध्यान करता रहा। उसकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने दर्शन देकर उससे वर मांगने को कहा। दुर्गम दैत्य ने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर यह वर मांगा, “हे पितामह! मुझे चारों वेद प्रदान करें और साथ ही ऐसा बल भी दें जिससे मैं देवताओं को परास्त कर सकूँ।"
ब्रह्मा जी "तथास्तु'' कहकर अंतर्धान हो गए।
ब्रह्मा जी और देवताओं के पास वदों के न रहने से भूमंडल पर हाहाकार मच गया। दुर्गम दैत्य ने स्वर्ग पर धावा बोल दिया। उससे परास्त होकर देवता स्वर्ग से भाग गए और पर्वतों की गुफाओं में छिपकर अपने दुर्दिन काटने लगे। अग्नि में हवन न होने के कारण वर्षा बंद हो गई। वर्षा न होने से सूखा पड़ गया। पृथ्वी पर एक भी बूंद जल न रहा। कुएं, बावलियां, पोखरें और नदियां सूख गईं। ऐसा सूखा सौ वर्षों तक रहा। गाय, भैंस आदि पशु और प्रजा काल के मुंह में समा गई। घर-घर मनुष्यों की लाशें बिछ गईं।
ऐसा घोर संकट होने पर तपस्वी, ब्राह्मण और देवता हिमालय पर्वत जाकर निराहार एवं एकाग्र मन से शरणागत होकर भगवती जगदंबा की स्तुति करने लगे, "हे सबके भीतर निवास करने वाली परमेश्वरी ! हम पर दया करो। तुमसे प्रेरणा पाकर ही दुर्गम दैत्य सब पर अत्याचार कर रहा है। इस घोर संकट में हमारी रक्षा करो। हे भगवती, हम तुम्हारे शरणागत हैं और तुम्हें बार-बार नमस्कार करते हैं। प्रसन्न हो जाओ और हम पर कृपा करो।"
ब्राह्मणों और देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवती पार्वती ने उन्हें सौ आंखों से युक्त अपने दिव्य रूप के दर्शन कराए। भगवती का वह रूप बड़ा सुंदर था। भगवती का वह रूप करुणा का अथाह समुद्र था। जगत की रक्षा करने वाली करुणामयी मां की सौ आंखों से जलधाराएं गिरने लगीं। नौ दिनरात वे दया की वृष्टि करती रहीं जिससे कुएं, बावलियां, सरोवर और सरिताएं फिर से उमड़ने लगीं। संपूर्ण प्राणियों को दुखी देखकर भगवती पार्वती की आंखों से आंसू के रूप में जल गिरा था जिसे पीकर प्राणियों को बड़ी तृप्ति हुई। सौ नेत्रों से जल बरसाने के कारण ही भगवती का नाम 'शताक्षी' पड़ा।
यह सब सुनकर दुर्गम दैत्य ने सेना सहित आकर चारों ओर से भगवती शताक्षी को घेर लिया। फिर क्या था-बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। भगवती ने कुपित होकर सेना सहित दुर्गम दैत्य को मौत के घाट उतार दिया और वेद देवताओं को सौंप दिया। इसके बाद देवता फिर से स्वर्ग पर राज्य करने लगे।
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