लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15402
आईएसबीएन :9788131010860

Like this Hindi book 0

’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

वामन

भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर तीन पग भूमि मांगने के बहाने संपूर्ण पृथ्वी दैत्यराज बलि से छीनकर देवताओं को दे दी। यही वामनावतार का प्रयोजन था। वामनावतार की कथा इस प्रकार है-

दैत्यराज बलि ने अपनी विशाल आसुरी सेना को लेकर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवतागण युद्ध में असुरों का सामना न कर सके और स्वर्ग लोक को छोड़कर भाग गए। स्वर्ग पर बलि का अधिकार हो गया। बलि चिरकाल तक स्वर्ग के राजा बने रहे। इसके लिए दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने बलि से सौ अश्वमेध यज्ञ कराने का निश्चय किया। इधर देवमाता अदिति ने पुत्रों को दुखी देखकर अपने पति महर्षि कश्यप से कोई उपाय करने को कहा। महर्षि ने भगवान की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर अदिति के गर्भ से वामन भगवान प्रकट हुए। महर्षि ने उनका उपनयन संस्कार कराया। यज्ञोपवीत होते ही श्री भगवान ब्रह्मचारी के रूप में बलि के यहां चल दिए।

उन दिनों नर्मदा नदी के तट पर बलि सौवां अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। तभी छाता, दंड, कमंडल लिए ब्रह्मचारी के वेश में वामन भगवान ने यज्ञशाला में प्रवेश किया। तेजस्वी ब्राह्मण बालक को देखकर सभी उठ खड़े हुए। राजा बलि ने उनका सत्कार किया और प्रार्थना, "जो इच्छा हो, मांग लें।"

वामन भगवान बोले, "असुरराज, ब्राह्मण को अपनी आवश्यकतानुसार ही दान लेना चाहिए, अत: मुझे केवल अपने पैरों से तीन पग भूमि चाहिए।"

उनकी बात सुन राजा बलि हंसकर बोले, “जैसी तुम्हारी इच्छा।'' यह कहकर उन्होंने संकल्प करने के लिए जलपात्र उठाया।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य सब कुछ जानते थे। उनसे भगवान की यह लीला छिपी नहीं थी। वे बलि को समझाते हुए बोले, “ये विश्वरूप विष्णु हैं। देवताओं का काम बनाने के लिए अवतीर्ण हुए हैं। ये तीन पग में तीनों लोक नाप डालेंगे और तुम्हारा सब कुछ छीनकर इंद्र को दे देंगे, अतः देने से इनकार कर दो।"

कुलगुरु की बात सुनकर राजा बलि बोले, "गुरुदेव! आपका कहना सच है, किंतु मैं देने की प्रतिज्ञा कर चुका हूं, अतः इनकार नहीं कर सकता।"

आज्ञा न मानने पर शुक्राचार्य ने क्रोधित होकर बलि को ऐश्वर्य-नाश का शाप दे दिया। गुरुदेव के शाप देने पर भी वे सत्य से नहीं डिगे। हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प कर लिया।

बलि के संकल्प लेते ही वामन विराट हो गए। उन्होंने अपने एक पग से पूरी पृथ्वी नाप डाली और दूसरे पग से स्वर्गलोक नाप दिया। दूसरा पग उठाते समय बायां पैर ब्रह्मलोक से ऊपर सत्यलोक में पहुंच गया। उनके पैर के अंगूठे के नाखून की टक्कर में ब्रह्मांड का आवरण तनिक टूट गया। उससे ब्रह्मांड के बाहर का ब्रह्मद्रव आ गया। उससे ब्रह्मा जी ने वामन भगवान का चरण धोया और उस चरणोदक को अपने कमंडल में रख लिया। वही चरणोदक 'गंगाजल' कहलाता है, अतः गंगा जी भगवान की मूर्तिमान उज्ज्वल कीर्ति हैं।

तीसरा पग रखने के लिए जब राजा बलि की कोई वस्तु न बची तो उन्होंने बलि को बंधवाकर उनका बड़ा अपमान किया किंतु बलि विचलित नहीं हुए। वे बोले, "भगवन, अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें।'' यह कहकर उन्होंने अपना सिर झुका दिया।

भगवान ने तीसरा पग बलि के सिर पर रखा और बलि से बोले, “अब तुम सुतल लोक का राज्य करो।' बलि के चले जाने के बाद भगवान के आदेश पर शुक्राचार्य ने यज्ञ पूरा किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book