धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
वायु देवता
एक क्षण कल्पना करके देखिए कि वायु के बिना क्या हम जीवित रह सकते हैं? नहीं, हम केवल स्वाश्रित का ही दंभ भरते हैं। वस्तुतः समस्त प्राणियों का जीवन वायु पर ही आश्रित है। वायु से प्रत्येक प्राणी की श्वास चलती है और श्वास बंद होने पर प्राणी की मृत्यु हो जाती है, अतः वायु देवता प्राणियों के प्राण हैं। शरीर में प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान नामक पांच प्रकार के वायु रहते हैं। यदि वायु देवता कुपित होकर वायु की गति रोक लें तो संसार के सभी प्राणी श्वास रुकने से कुछ ही देर में काल के गाल में समा जाएं। संसार एक बार वायु देवता के कोप का परिणाम भोग चुका है।
हुआ यों कि पवन-पुत्र हनुमान ने अपनी बाल्यावस्था में भूख शांत करने के लिए नवोदित सूर्य को पका फल समझकर अपने मुंह में रख लिया। ऐसी स्थिति में लोक में अंधकार छा गया। सूर्य को हनुमान के मुंह से मुक्त कराने के लिए देवराज इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान पर प्रहार किया। वज्र के प्रहार से बालक हनुमान अचेत होकर आकाश से नीचे गिरने लगे परंतु पवनदेव ने उन्हें गोद में ले लिया और एक गुफा में जाकर बैठ गए।
एक मासूम पर वज्र प्रहार करने से वायु देवता इंद्र से खफा हो गए और उन्होंने सारी वायु खींच ली। वायु के बिना प्राणी व्याकुल होकर त्राहि-त्राहि करने लगे। विश्व के प्राणियों को अचेत देखकर देवगण ब्रह्मा जी के साथ उस गुफा में पहुंचे। ब्रह्मा जी ने बालक हनुमान को जीवित कर दिया और लोकमंगल के लिए वायु देवता से वायु छोड़ने को कहा। जब वायु देवता ने वायु संचरण किया तो प्राणियों में पुन: चेतना आ गई। जो संपूर्ण प्राणियों के प्राण हैं, उन वायु देवता के जन्म की कथा इस प्रकार है-
महर्षि कश्यप की पत्नी और दैत्यों की माता दिति बहुत दुखी थीं क्योंकि उनके बलशाली पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु को देवरक्षक भगवान विष्णु ने मार डाला था। उनके वध का कारण देवराज इंद्र थे, इसलिए दिति अपनी सौत के पुत्र इंद्र से नाराज थीं। वे चाहती थीं कि उन्हें ऐसा बलशाली पुत्र प्राप्त हो जो इंद्र का वध कर सके। इसी कामना से वे अपने पति की सेवा में जुट गई। महर्षि कश्यप ने दिति से एक विशेष व्रत करने को कहा। वे व्रत करने में लग गई।
उधर यह जानकर कि विमाता दिति मेरे वध हेतु व्रत कर रही हैं, इंद्र घबरा गए। विमाता के व्रत में खलल डालने के उद्देश्य से वे उनकी सेवा मंइ जुट गए। दैत्य माता दिति व्रत का पालन बड़ी सावधानी से कर रही थीं। समय पूरा होने में कुछ ही दिन शेष रह गए थे कि उन्हें एक दिन संध्या के समय नींद आ गई। फिर क्या था, मौका मिलते ही इंद्र ने दिति के गर्भ में प्रवेश करके गर्भ में पल रहे। शिशु के अपने वज्र से 49 टुकड़े कर डाले लेकिन वे टुकड़े नहीं मरे। वे व्रत के प्रभाव से बालक बन गए, इसलिए पवन देवता के 49 रूप हैं। देवराज इंद्र ने उन सबको अपने पक्ष में करने के लिए देवता बना लिया।
वायु देवता की आराधना से स्वास्थ्य ठीक रहता है, जीवन में सिद्धि प्राप्त होती है और संसार में व्यवस्था कायम रहती है। इनकी आराधना से नि:संतान को पुत्र की प्राप्ति होती है। वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी देवी ने पुत्र प्राप्ति के लिए पवनदेव की उपासना की थी। पवनदेव के अंश से माता अंजनी द्वारा हनुमान उत्पन्न हुए थे। इस कारण हनुमान ‘पवन-पुत्र' कहलाते हैं। पांडु-पुत्र बलशाली भी मसेन भी वायु के अंश से उत्पन्न हुए थे।
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