लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15402
आईएसबीएन :9788131010860

Like this Hindi book 0

’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

अर्यमा


अर्यमा महर्षि कश्यप की पत्नी और देवमाता अदिति के पुत्र हैं। अर्थात ये इंद्रादि देवताओं के भाई हैं। शास्त्रों के अनुसार उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास-लोक है। अर्यमा की गणना नित्य पितरों में की जाती है। इस जड़चेतनमयी सृष्टि में शरीरों के निर्माण का कार्य नित्य पितर ही करते हैं। मातापिता तो परस्पर संभोग करके रज-वीर्य को मिलाने का ही कार्य करते हैं किंतु स्त्री के गर्भ में रज वीर्य से शरीर की संरचना नित्य पितर ही करते हैं।

अर्यमा पितरों के स्वामी हैं, अतः श्राद्ध में पितरों की तृप्ति इन्हीं के प्रसन्न होने पर होती है। पितरों को तर्पण (जल-दान) करते समय ॐ अर्यमा तृप्यतां इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नम: कहकर अर्यमा का भी तीन बार तर्पण किया जाता है। वे यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ 'स्वाहा' का दिया हव्य और श्राद्ध में ‘स्वधा' का दिया कव्य दोनों स्वीकार करते हैं।

अर्यमा 'मित्रता' के अधिष्ठाता हैं। मनुष्य को सच्चे मित्र की प्राप्ति इन्हीं की कृपा से होती है और मित्रता का निर्वाह भी इन्हीं के आशीर्वाद से होता है। वंशपरंपरा की रक्षा भी अर्यमा की कृपा से होती है, अतः पुत्र-प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की जाती है। यदि अपने परिवार का कोई सदस्य मरने के बाद प्रेत बन गया हो और वह अपने ही परिवार वालों को परेशान कर रहा हो तो उस प्रेत के आतंक से छुटकारा अर्यमा की पूजा करने से मिल जाता है।

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book