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नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15403
आईएसबीएन :000

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नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

7

लतू सहसा उसके सिर पर एक टहोका लगाकर कहती है, “तू बुद्धु है। इस तरह देखने के बारे में कह रही हूं?...जान-पहचान की बावत कह रही थी।"

सागर उदासी भरे स्वर में कहता है, “मैं कैसे जान-पहचान करने जाऊं?"

हां, सो तो सच है।" लतू फिर हो-ही कर हंसती है, “तू तो टांग तोड़कर बैठा हुआ है। दादू तुम लोगों से मिलने नहीं आए थे?"

"सुना, कल आए थे। निचले तल में बैठे बातचीत कर चले गए।”

जवाब देने के सिवा दूसरा चारा नहीं है, इसीलिए बोलना पड़ा।

वरना उसका हो-ही हंसना और टांग टूटने की बात सुनकर दुबारा दिमाग गरम हो गया है।

"बाप रे! तू यहां पड़ा हुआ है और वह बूढ़ा एक बार भी तुझसे मिलने नहीं आया?” सतू बड़े-बुजुर्गों की तरह गाल पर हाथ रखकर कहती है, “बूढ़ा एक अजूबा प्राणी है। ...उसके बारे में कुछ सुनने को मिला?”

सागर गंभीरता के साथ बाहर की ओर आंख टिकाए बोला, "सब कुछ सुना है।"

“सो तो सुनेगा ही। चिनु मौसी ने बताया ही होगा। देख, कैसा विचित्र अदिमी है। कहां राजा की तरह रहने की बात थी, सो तो नहीं, दीन-हीन किसान की तरह रह रहा है। दूसरे आदमी को दिया हुआ खाता है।"

सागर दूसरे का दिया हुआ' का अर्थ समझता है। इसलिए कहती हैं, "किसका दिया हुआ?”

"ओह, समझ नहीं सका? साहब दादू के अपने घर में रसोई पकाने का कोई इन्तजाम तो है नहीं। कौन पकाएगा? घर में न कोई औरत है और न ही रसोइया या नौकर। पटाई दिदा रसोई पकाकर दो वक्त खाना खिला जाती है इसीलिए...."

यह लड़की तो बात करने का सलीका भी जानती है।

सागर मन-ही-मन सोचता है।

पटाई दिदा ! यह किस तरह का नाम है !

'वह कौन है?'

इसके अतिरिक्त साहब दादू के लिए कौन रसोई पका देता है, यह जानकर सागर को क्या लाभ होगा?

सागर खामोश रहता है।

लतू दूसरा अमरूद खत्म कर हाथ झाड़ते हुए कहती हैं, “तूने पटाई दिदा को देखा है?”

”नहीं।”

"नाम भी नहीं सुना है।

"बाप रे! असली आदमी का ही नाम नहीं सुना?” लतू मुसकराती है।

"असली आदमी का मतलब? वे कौन हैं?”

"कौन हैं? चिनु मौसी की रिश्ते में बुआ, और कौन?” लतू ने अपने चेहरे पर अकस्मात् शांति का भाव क्यों ओढ़ लिया, कौन जाने ! साहब दादू की भी उसी तरह दूर की बहन लगती हैं। बड़ी ही मजेदार औरते हैं। हर वक्त हंसती रहती हैं, बात-बात पर श्लोक का उद्धरण देती हैं, बीच-बीच में गीत भी गाती हैं।"

सागर को यह सब बात अच्छी नहीं लग रही थी, कहां की कौन है, पता नहीं, उसके बारे में सुनकर सागर को क्या मिलेगा?

लतू कमरे में चहल-कदमी कर रही थी, दुबारा बैठी नहीं।

अब बोल पड़ी, “गपशप करना तुझे अच्छा नहीं लग रहा, यह समझ रही हूं। चलती हूं। चूंकि कलकत्ता से आया है, इसीलिए खुशी हुई। कलकत्ता के आदमी देखने में बहुत ही अच्छे लगते हैं।

सागर के मन में ममता जगती है। सचमुच, उसका बर्ताव सलीके का नहीं है। बोल पड़ा, “मैंने तो नहीं कहा कि अच्छा नहीं लग रहा है।”

"तूने कहा नहीं, मगर तेरा चेहरा बता रहा है। अच्छा, चलती हूं। दोनों अमरूद प्रवाल दा को दे देना।" कि और तरक्षण सागर का मन उदास हो गया।

आश्चर्य ! अब तक तो यही महसूस कर रहा था कि कब जाएगी वह। बातें करते-करते सिर में दर्द पैदा कर दिया। लेकिन जाने के दौरान चुपचाप चली गई। ममती जग रही है मन में।

अहा, गांव में पड़ी हुई है इसलिए कलकत्ता के आदमी को देखती है तो उसे अच्छा लगता है। लेकिन यह बात पहले ही कहनी चाहिए थी। कहा होता तो सागर उससे अच्छा बर्ताव करता।

सागर की धारणा थी, गांव की औरतें अत्यन्त शांत-शिष्ट, सभ्यसंयत होती हैं, यही वजह है कि लतू उसे वाचाल लग रही थी। अब

लग रहा है, कौन-सी वाचालता को है उसने? इसलिए कि ज्यादा बोलना पसन्द करती है?

सागर ने मन-ही-मन तय किया, इसके बाद मुलाकात होगी तो अच्छा सुलूक करेगा। उसकी बातचीत के प्रति उत्साह का प्रदर्शन करेगा।

लेकिन वह इन लोगों की कौन है? हम लोगों से कौन-सा रिश्ता है?

रिश्ता कुछ भी नहीं है, न ही हो सकता है, यह समझना सागर के लिए संभव नहीं है। सागर की हमउम्र कोई लड़की होती तो बेशक समझे जाती। लतू की उपाधि सुनकर ही समझ जाती। मुखर्जियोंचटजयों से सरकार उपाधिधारियों के रिश्ते को जोड़ने वाली कोई कड़ी नहीं हो सकती, लड़कियां यह बात जानती हैं। यह भी एक आश्चर्य की बात है।

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