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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15404
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...

14

''पीछे से छोटे-छोटे अंश ना सुनकर कमरे में आकर पूरी कथा सुन सकतीं थीं।

पौली ने नाक और भी सिकोड़ कर कहा-पीछे से सुन रही थी। उंह। कान में बातें आ रही थीं। उनका गला काफी जोर था। तुम्हारे कोई रिश्तेदार थे। क्या सोच नहीं सकती तुम्हारा ऐसा फालतू रिश्तेदार भी हो सकता है?

मैं भी गम्भीर हो गया-"वह मेरा नातेदार था ऐसी धारणा तुम्हें कैसे हुई?''  

''बातों के लहजे से। कान में आया गांव में कोई मर गया है?''

मैं तेजी से बोला-''ना।''

पौली की आंखों में आंसू आ गये, वह बोली-''गुस्सा क्यों कर रहे हो? लगा कि मर गये हैं-अब नहीं पूछूंगी।''

पौली के इस करुणामय रूप ने मुझे विगलित कर डाला, मैं अपने दृढ़ स्वरूप में ना रह पाया। तब मैं हार मान लेता हूं। एक बार यह भी सोचा, कह ही डालूं। पर अपने आप को संभाल लिया। मेरे पिता की मृत्यु हो गई है-इस दैन्य को पौली के समक्ष उजागर नहीं कर सकता।

पौली के पिता मिस्टर पाइन की तरह ऐसे व्यक्तित्व के धनी पिता रहेंगे जो स्वयं गाड़ी चलाकर रांची, हजारीबाग जाते हैं, एक बोतल शराब एक साथ गटक कर भी नहीं भटकते, बड़ा बाजार में लोग उनका नाम सुनकर ही अपने हाथों को जोड़कर प्रणाम करते हैं-और इधर मेरे पिता हैं ही नहीं।

मैं यह खबर नहीं सुना सकता। फिर और चिन्ता जिसने मेरे मन को नरम होने से बचाया-वह था मेरे पिता नहीं है, मेरा सूतक चल रहा है, मै जूता पहनता हूं, सूट पहन रहा हूं, मुर्गी खा रहा हूं-पौली यह सब देखे-मैं यह कभी नहीं होने दूंगा।

पौली ने जो भी सुना है (शायद पूरा सुना है। फिर भी मैं नहीं मानता) सुने, मैं नहीं बताऊंगा मेरा कोई नहीं मरा।

सिर्फ मैं ही मर गया हूं।

बाबा, बाबा-आजकल बेबी मुझे पुकारने लगी है। मुझे देखकर ही बुलाती, और आया की गोद से मेरी गोद में आना चाहती थी। मैं उसे बाबा बुलाना चाहता था, यह सुनकर पौली ने स्थायी रूप से अपनी नाक सिकोड़ डाली। छिः! तुम्हारी रुचि कितनी विकृत है।

हँसकर कहा-सच। यह बात मुझे हर पल अपने अस्थि मज्जे से समझ में आ रही है। पौली चौंक गई।

पौली इस प्रकार के आक्रमण के लिए प्रस्तुत नहीं थी। तभी उसे जबाव देने में देर लगी।

फिर ही-ही कर हँस पड़ी। अब तो मालूम पड़ा है। कैसा मजा दिखाया। अब तो समझ रहे हो कैसा बुद्धू बनाया-ढका-हां, मामला दोनों ओर का है-अदला-बदली तो हो आई है। हां, एक बात कहे देती हूं-बच्ची को ऐरे-गैरे के बच्चों की तरह बाबा बुलाना मत सिखना। डैडी सुन कर तुम मूर्च्छित हो जाओगे तभी बापी कहना सिखा रही हूं।

शायद पीली के निर्देशानुसार आया ने बापी सिखाया। बेबी मुझे देख कर आनन्द-उल्लास से बापी-बापी कह कर चिल्ला उठती। पर मैं उसे नहीं ले पाता। जब भी आगे बढ़कर हाथ बढ़ाता कहां से पौली आकर तेजी से अपना गुस्सा दिखा देती, गोद में लेने की क्या जरूरत है? गोद में लेने की आदत बुरी होती है, बच्चे बिगड़ जाते हैं। आया उसे लेकर कमरे में जाओ।'

आया भी तुरन्त चली जाती।

मैं,''मुझे तब नहीं सूझता क्या करूं?''

मैं उस वक्त कैसा दिखता था। पर कभी यह जरूर कहता-''तुम्हारी बेटी के बिगड़ने का चान्स नहीं है, तुम उसे ठीक संभाल लोगी।''

पौली ने बालों को लहरा कर गले के सुर में झंकार पैदा किया-''अगर तुम दुश्मनी करो तो मुश्किल है बेटी को सभ्यता सिखाना चाहिए कि नहीं।''

शुरू-शुरू में मैं पहले यही विश्वास करता था। अपनी बेटी को वह शायद एक अवास्तव कल्पना के ढांचे में रख कर पालना चाहती है?

इससे ज्यादा मैं नहीं सोच सकता था। मैं इसी चिन्ता में मशगूल रहा करता था।

लेकिन बाद में पौली के वर्तमान आक्रोश की वजह का गढ़ सत्य पता चला-वह था पौली को आया को मेरे पास आना बरदाश्त नहीं पौली को जलन थी। हालांकि बूढ़ी आया रखने से फैशन का हनन होता था।

तरुणी आया जो आधुनिक साज पोशाक और स्मार्ट होगी यही आधुनिकता थी। उसके लिए अगर क्लर्क की जितनी तनख्वाह देनी पड़ी तो भी देकर रखना पडता है।

आया को अच्छा खाना, पकड़ा, साबून सब देना पड़ेगा। यही नियम था। पौली यह सारी जरूरतें पूरी करती थी, सिर्फ मुझी को आंखों की कड़ी निगरानी में रखती थी।

हालांकि उसके पास पहरा देन का वक्त भी नहीं था। हमेशा ही व्यस्त थी।

कहां वह जाती थी, कहां उसका कितना काम रहता था यह बात पीली और उसके चेलो को ही पता रहता था। उसे घर में पाना दुष्कर था। वह शायद रात गहराने तक बाहर रहती थी। एक दिन उसे पकड़ा-

''पर गृहस्थी सब उजाड़ कर तुम ऐसा कौन-सा काम करती हो?''

वह हँसी से लोट-पोट हो गई-वह क्या है? रसोइया खाना बनाता है, नौकर-महरी हैं वे सब अपना-अपना काम करते हैं, बेबी की देखभाल आया करती है-''मैं अपना काम बन्द करके गृहस्थी के किस पुर्जे पर तेल लगाऊंगी?''

हँसा-सबका तो सब है-मेरा कौन कहां है? पौली के साथ बात करने की इच्छा जगी थी तभी तो ऐसी रसभरी बात कही।''

पीली अचानक कड़वे गले से जहर उगलने लगी-''क्यों है क्यों नहीं? सुन्दर तरुणी, है-बच्चे को लेने के बहाने उसे भी खींच कर अपने आलिंगन में बांध सकते हो।''

मेरा ना जाने कहां से पागलपन का दौरा पड़ा, मैंने सब कुछ भुलकर पीली के गाल पर कस कर एक तमाचा जड़ दिया।

सिर्फ एक सैकिंड उससे ज्यादा समय नहीं हुआ, एक प्रलय घट गया। चांटा जड़ते ही पौली का जरी का सुन्दर नागरा का एक जोड़ा मेरे गाल पर आ पड़ा। नागरे का जोड़ा मैं कुछ दिन पहले दिल्ली से खरीद कर लाया था, पौली उसे पहन कर कालीन पर चलेगी यही सोचा था। पौली ने ऐसे गरजना शुरू कर दिया जैसे किसी सर्पिनी के पूंछ पर पैर पड़ने से वह हिसहिसा कर अपना आक्रोश जताती है-''चांटा मेरे गालों पर-जे.एन.पाइन की बेटी के गाल पर चांटा, तुमने सोच क्या रखा है। मेरे पिता के कारण इतना ऊपर चढ़के अपने आपको क्या समझने लगे हो? तुम्हारी दुष्टता पर मुझे घृणा होती है। नौकरानी से प्रेम करोगे, और मुझे नीति उपदेश देने आते हो-उसे मैं विदा करके ही छोड़ूंगी''-यह कहकर वह चली गई। हां, आग की तरह जलती-जलती ही।

तब मैं यह ना सोच पाया था पौली ऐसा काण्ड कर सकती है। पौली हमेशा एक संयमित व्यवहार का प्रदर्शन करती आई थी। थोड़ा बहुत ड्रिंक करती थी, उसके पिता ने ही बचपन से प्यार से अपने साथ पिला कर उसमें यह मद्यपान की आदत डाल दी थी।

आजकल यह आदत जोर पकड़ने लगी थी। मना करने से फल नहीं निकलता था। इसीलिए मैंने छोड़ दिया था। लगता था मद्यपान की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।

उसने जो खतरनाक काम किया उसे पागल या मद्यम के अलावा कोई और नहीं कर सकता। अन्दर से पौली अपने पिता से मिले उपहार को जो एक चाबुक था जिससे कुत्तों को काबू में लाया जाता है; लाकर उस आया की पीठ पर बरसाने लगी।

भयानक चीख, भयानक गर्जन, कई लोगों की एकसाथ बातचीत, बेबी का रुदन सब मिलाकर वह घर नरक का डेरा लगने लगा। मैं अन्दर जाकर उस दृश्य को देख कर स्तम्भित हो गया।

उस दृश्य के आमने-सामने मुझे होना पड़ा था जो मेरी धारणा से परे थी। पर चले भी आना पड़ा बिना किसी शब्द का प्रयोग करे। पौली का स्वरग्राम उच्च-उच्चतर चला गया-साहब के साथ इश्क-मैं घर में नहीं रहती तो जो मर्जी आये वही करेगी। कुत्तों से कटवाऊंगी-उसका स्वर जो पानीय पान के कारण मदमत्त हो रहा था।

मैं उस रोती हुई बच्ची को उठाकर उस महल के समान घर से निकल आया और उस बड़ी-सी राजाओं जैसी गाड़ी पर चढ़ कर काफी देर घूमता रहा।

उसका रोना थामने के लिए चॉकलेट, गुड़िया-लेकिन बेबी ने भी अपना अविराम क्रन्दन सुर नहीं भुलाया। वह लगातार रटती रही-आया को मार रहे हैं-आया को मार पड़ रही है।

उसके जीवन की एकमात्र प्यार, आश्रय सभी आया ही थी। उसके भीतर का आवेग उथल रहा था-आया मर जायेगी।

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