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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15404
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...

17

कुमारी पौली जब मेरे साथ स्वच्छन्दता से घूमती उसमें मुझे कुछ भी बुराई नजर नहीं आती पर अब जब विवाहिता पौली पांच लड़कों के साथ घूमती है तो मेरे अन्दर आग क्यों धधकने लगती है?

बेबी के जन्म समय नर्सिंग होम के उस डॉक्टर के छोटे-से प्रश्न ने क्या घृणा का बीज रोप दिया था? डॉक्टर के झुके गम्भीर मुख से मुझे क्या शौरी शब्द हर पल सुनाई देता है?

काफी वक्त तब मैं बिना नजरें हटाये बेबी को देखता रहता; लेकिन उस चेहरे पर मेरे चेहरे की छाप थी। जो भी देखता वही यह कहता, बेबी की तस्वीर भी यही बताती थी।

तभी तो बेबी मुझे असाधारण तौर पर अपनी लगती। तभी तो सोचता था बेबी को कैसे गृह से निर्वासित होने से बचाऊं। जिस दिन उसे भेजा जायेगा उस दिन क्या मैं उसे लेकर भाग जाऊ? उसे क्या चुपके-चुपके कांचनगर में अपनी मां के पास रख आऊं? मेरी मां बेबी की दादी भी तो है।

अपनी दादी। जैसे हम दादी के पास अचार की मांग करते, उनके भंडारे से आमपापड़ चोरी कर भागते, शाम को हम सारे बच्चे मिल कर उनसे कहानी सुनते।

वैसा ही एक दादी बेबी की भी मौजूद है। लेकिन बेबी का पिता? वह क्या बेबी की दादी को मां कहकर पुकार पायेगा? अगर मां कह कर ना बुलाकर एक चिट्ठी लिखकर चला आये। तब भी तो बेबी को घर से निकालना ही पड़ेगा। इस कलकत्ते वाले घर में जहां बेबी को देखता हूं। उस घर को ही छोड़ना पड़ जायेगा-

वास्तव-अवास्तव अनेकों प्रकार की कल्पनायें मेरे मन में आती जा रही थीं। किसी को भी पूरी तौर से कार्य में नहीं जा पा रहा था। यह मैं जानता था तीन बरस की छोटी बेटी को मैं बोर्डिंग नहीं जाने दूंगा।

ना-मैंने बेबी को बोर्डिंग नहीं जाने दिया। बेबी को एकसी जगह रख अया जहां उस पर किसी भी चीज का खतरा ना था। वहां उसे किसी विपत्ति की आशंका ना थी और जहां उसकी मां उस पर उत्पीड़न नहीं कर सकती थी। बेबी की मां भी तो-।

क्या-बेबी के बारे में और जनने की इच्छा रखते हैं? क्यों-उसे नहीं जानने से आपको कुछ समझ नहीं आयेगा?

फिर तो वहीं चलें जब बेबी को ज्वर आया था। सुबह मैं बेबी का काफी तेज बुखार देखा गया था। डॉक्टर को फोन करके अपने काम पर चला गया था। पूरा दिन मन भारी रहा था। शाम को घर लौटा तो देखा ड्राईंगरूम में काफी शोर-शराबा था-गाने का रियाज चल रहा था।

मेरा पूरा ब्रह्मांड क्रोध से जल उठा। मैं रुढ़ स्वर से बोला-''डॉक्टर आया था?''

पौली अपने भक्तों के समक्ष पति की इस रूढ़ता से अपमानित महसूस कर रही थी-तभी वह भी लापरवाही से बोली-''आयेगा क्यों नहीं? बुखार कितना है?''

''डरो नहीं-एक सौ पांच डिग्री नहीं है।'' मेरे माथे पर खून सवार हो गया। मैंने कठोर लहजे में पूछा-''यह सब हो क्या रहा है?'' पौली सोफे से उठ गई।

पौली के वक्ष से शिफौन की पतली साड़ी का आंचल सरक गया जिसे उसने अवमानना से अलग हटा दिया। पौली के ब्लाउज के वी आकार वाले गले के बीच से हीरा-पन्ना लौकेट जल रहा था, उसी के साथ पौली की आंखें भी जलने लगीं।

उसके चेहरे पर जो हँसी फैली थी वह थी विद्युत रेखा। उसके चेहरे की हँसी में विद्रूप-विद्युत झलक रहा था। वह मुझे परिहास करने लगी-''देख ही तो रहे तो गाने की प्रैक्टिस चल रही है, सुनना चाहो तो बैठो।''

मेरे माथे की अग्निशिखा गले में भी प्रवाहित होने लगी-मैंने जोर से कहा-''शटअप।''

हां, पाइन साहब की बेटी को मैंने शटअप कहा फिर उसके चेलों को निकल जाने को भी कहा।-''हरामजादे सूअर-अगर इस घर की चौखट को लांघा तो चाबुक से मार-मार कर पीठ की चमड़ी उधेड़ दूंगा।''

वे लोग ऐसे दुम दबाकर भागे जैसे पागल कुत्ता लाठी खाकर भागता है, अपनी देवी की ओर एक बार देखा तक नहीं।

देवी ने मेरी ओर देखा। अपने छोटे-से आंचल को कमर में खोंस कर हांफते हुए बोली-सोचा क्या है तुमने?

मैंने उस सुन्दर चेहरे की तरफ देखकर जिसके चारों ओर बाल ऐसे लग रहे थे जैसे सांप के फन हों-''जो सोचा है अब तुम्हें दिखाऊंगा।''

वह बोली-''ठीक है।'' वह चिल्लाई नहीं सिर्फ कहा, ''ठीक है, तुम्हें भी दिखा रही हूं।''

कह कर सीढ़ी से ऊपर चली गई। मैं भी उसके पीछे तीर के वेग से चढ़ गया।

मैंने उसके चेहरे पर एक भयंकर निश्चय की रेखा देखी। मुझे डर लगा, लगा पौली भी निर्मला की तरह हो जायेगी।

मैं उसके पीछे गया, अगर वह बरामदे से कूदे-मैं कैसे उसे बुलाऊं लेकिन मेरा स्वर ना निकला, मैं जितना जल्दी...

लेकिन मैं पौली के हल्के, छरहरे बदन के साथ कैसे ताल रखूंगा? इसीलिए मैं पीछे रह गया।

तभी तो मैंने देखा-पौली निर्मला के पथ पर नहीं गई। पौली बरामदे से नहीं कूदी, जाकर क्या देखता हूं-पौली ने ज्वर से आक्रान्त सोई बेटी को हिलाकर दबे स्वर से कहा-''उठ-उठ कहती हूं।''

मैं आशंकित होकर आया था, पौली कहीं निर्मला-पौली उस बच्ची को-मैंने उसका हाथ पकड़ा-''क्या हो रहा है?''

उसने जबाव नहीं दिया-एक झटके से मेरा हाथ हटाकर और जोर से झटका दिया-''उठ-उठ चल इस घर से।''

फिर मुझे कुछ नहीं मालूम।

सिर्फ एक भयभीत शिशुकंठ को आर्त्तनाद-फिर किसी चीज के गिरने की आवाज-''फिर सब शान्त। उसे खींच कर खड़ा कर दिया गया था पर उसके घुटने कमजोर थे सो वह गिर पड़ी। बेचारी का शरीर ज्वर से तप रहा था। ऐसी हालत में उसे खड़ा करना...।

अगले दिन मैं बेबी को सुरक्षित जगह पर रख आया जहां से कोई उसे खींच कर उठा नहीं सकता, कोई उसे उत्पीड़ित नहीं करेगा और ना ही बोर्डिंग स्कूल भेजने की कोशिश करेगा।

''उसके कुछ दिनों के बाद पाइन साहब की प्यारी बेटी पौली भी मर गई। हां, एक दुर्घटना से, आकस्मिक इलेक्ट्रिक तार से...।''

पेपर में जिसका शीर्षक था-'तहिताहत'। यह तो सिर्फ एक घटना थी, दुर्घटना थी जो अखबार के विशिष्ट परिच्छेद पर प्रकाशित होनी जरूरी थी। प्रख्यात धनी श्री जे.एन.पाइन की एकमात्र कन्या, विख्यात धनी श्री अतनू बोस की पत्नी श्रीमती पौली की अकस्मात् 'तहिताहत' द्वारा मृत्यु-यह एक विशिष्ट समाचार नहीं था?

ना जाने कैसे एक साधारण बड़े स्विच के तार से वह विपदा घटी। उसका विशद विवरण भी अखबार में दिया गया था।

मैं शौक से इस प्रकार विह्वल था कि जिसने भी मुझसे प्रश्न किया मैं उचित जबाव ना दे पाया, उन्होंने नौकरों से ही सब सुना। वे यानि अखबार वाले पुलिस के लोग।

आपके धर्माधिकारण के अनुचर-वे आये कहीं कोई अधर्म घटा या नहीं यह देखना भी तो उनके कर्त्तव्य में शामिल है। वे आये, जिरह किया फिर स्वाभावि़क घटना बता कर रिपोर्ट भी पेश की।

पौली बोस के संग विवाहित जीवन की यही यवनिका खींची गई। यह छह बरसों का काल था। सबसे लम्बा पाइन साहेब-वे कुछ दिनों के लिए किसी जरूरी काम से लिवरपुल गये थे। उनके पास जब समाचार पहुंचा तब वे लौटे। उनका स्थायी पता मालूम न था तभी ट्रंककॉल ना किया जा सका।

जब वे लौटे तो तब क्या छानबीन करते? टूटा हो। पाइन साहब की एकमात्र कन्या की मृत्यु अतनू बोस की भी तो-साथ में पत्नी थी। मुझे कौन इस बात पर धमकी देगा कि इलेक्ट्रिक लाइन में गड़बड़ थी तो देखा क्यों नहीं?

पाइन साहब भी दामाद को मन में शान्ति लाने का उपदेश देकर चले गये।

अतनू बोस का महल पौली बोस के बड़े-बड़े चित्रों से भर गया। दीवार, टेबिल, सेल्फ, अल्मारी सभी उच्च स्थलों पर उसकी तस्वीरें लगा दीं गईं। उसमें सारी अदायें कैद थीं।

निर्मला बोस की तरह तो उसको फोटो का अकाल ना था। असंख्य तस्वीरें-लेटी, बैठी हुई, खड़ी हुई, आधी लेटी, आधी बैठी खड़ी कितनी ही मुद्राओं में तस्वीरें थीं।

यह सब अतनू बोस को चारों ओर से घेरे हुए थी। दिन-रात वह अकेले कमरे में इन्हीं के साथ रहता। समझ ही रहे हैं कि अतनू बोस कितने मजबूत दिल वाले थे। हां, जी हां, उनका कलेजा पत्थर का था, नहीं तो पौली बोस का परिच्छेद खत्म कर कोई योरोप भ्रमण के लिए निकल सकता है?

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