लोगों की राय

नई पुस्तकें >> अधूरे सपने

अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15404
आईएसबीएन :81-903874-2-1

Like this Hindi book 0

इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...

21

अचानक हैजा होने का तो बहाना था। अतनू बोस को शाबासी देनी होगी। किसी भी बात से ना टूटने की करामात-उसे तो पुरस्कार प्राप्त होना चाहिए।

अतनू के कुछ हितैषी मित्र भी थे। बड़े बाजार के सूत्र से प्राप्त। जिनके यहां वह शादी-ब्याह पर उपहार लेकर जाया करता था साथ में पौली बोस भी। उन लोगों ने अतनू बोस की चौथी शादी को आखिरी ही समझा था, वे भी उसे दयादृष्टि से देखने लग गए। शायद पीछे कानाफूसी करते भी होंगे-''पौली की जगह पर यह काली, बांस सी मास्टरनी...।''

पर वे भी उसके शोक पर सहानुभूति दर्शाने आए। कहा-क्या करोगे? लगता है गृहस्थ-सुख तुम्हारे नसीब में ही नहीं।

अतनू बोस उनके सहानुभूति का जवाब ऐसे देता, चाय पीयोगे।

वे सब उससे पूछते अचानक कैसे ऐसी बीमारी हुई?

तब अतनू कहता-सिग्रेट मंगवाऊं।

तब वे आखिरी वार करते वनवाला के साथ वनवास का शौक तो पूरा करा अब लोगों के साथ रहो।

अतनू हां, इस घर को मैंने अपनी आखिरी पत्नी के पिता यानि अपने ससुर को दान में दे दिया। वह बड़ा गरीब है, मुझे उसने बूढ़ा जानकर भी अपना दामाद बनाया था।

उस घर को बल के रूप में प्रयोग कर क्या अपनी विवेक की ताड़ना से परिताप पाना चाहता था?

दोस्तों को इस बात से खुशी नहीं हुई, इतना सुन्दर बगीचों से घिरा मकान अपनी मृत पत्नी के बाप को दिया यह कहां का इंसाफ है? इतना प्रेम तो ना था। शायद इसी को अमीरी का शौक का नाम दिया गया है।

अतनू बोस दुबारा अपने राज प्रासाद में वापिस लौट आये।

जैसे किसी बुरे सपने से उसकी नींद खुल गई। उसे माधवी कुंज की जीवन धरा को याद करने से ही लाज आती और साथ में स्वयं पर गुस्सा भी आता।

अपने पुराने जीवन में लौटकर उसकी जान में जान आई।

लेकिन मैं फिर से उसी गलती को दोहरा कर क्यों पछता रहा हूं।

अतनू बोस कौन? मैं ही तो हूं जो अपनी चौथी बीवी का काम तमाम करके एक भयंकर बीमारी का शिकार हो गया था।

पाचन प्रणाली के जटिलतम भागों में जटिलता। एक बड़े आप्रेशन के लिए नर्सिंग होम में कुछ दिन रहना पड़ गया। फिर तो में बुढ़ापे की तरफ बढ़ चला, शरीर में चुस्ती-फुर्ती ना रही।

चिकित्सक मंडली ने सलाह दी कि मुझे रोगी की तरह खाना-पीना हर बात में परहेज करके रहना पड़ेगा। वह भी जितने दिनों तक मेरी आयु बाकी है।

जिन कीटाणुओं से माधवी को हैजा हो गया था। वे ही क्या असावधानी वश माधवी बोस के पति की पाचन नलियों में भी प्रवेश कर गये? या माधवी जब अपनी मृत्यु मलिन आंखों से उसे स्तब्ध होकर देख रही थी तब उसी दृष्टिपथ से उसने मृत्यु का जहर भेज दिया? पता नहीं जैसे भी हुआ पर व्याधि तो खतरनाक किस्म की ही लगी थी।

फिर भी मैं बिना मरे ही नर्सिंग होम से वापिस भी लौटा और यह भी महसूस होने लगा कि माधवी मेरी आखिरी बीवी नहीं थी।

अब शायद आप लोगों का धैर्य जबाव दे गया है। सोच रहे होंगे यह आदमी और कितनी देर अपनी जबान चलाता रहेगा?

सुनना तो आप लोगों को पड़ेगा ही। खून के केस का मुकदमा-जूरी गणों को सुनना ही पड़ेगा एक आध खून नहीं दो जोड़े खून करके पकड़ा गया आसामी। जो पांच कत्ल का नायक भी कहलाया जा सकता है। अगर उसमें कांचनगर के मझले बाबू के एकमात्र सन्तान अतीन्द्र नारायण को भी उस खून में शामिल करें।

अतनू बोस ने उसे भी तो इस संसार से मिटा डाला।

विश्वास करिये महोदय इन हत्याओं से मैं विचलित नहीं हुआ। क्यों होता भला। मैंने तो कभी अन्याय नहीं किया था। मेरा दोष तो यही था ना मैं सुख पाना चाहता था। किसी दूसरे का सुख छीन कर नहीं मैं स्वयं ही सुख को प्राप्त करना चाहता था। अपनी चेष्टा से उस सुख को गहरा करना ही मेरी तपस्या थी।

मेरी इस चेष्टा से अगर कोई हस्तक्षेप करे या किसी की वजह से मुझे आशा भंग की तकलीफ सहनी पड़ जाये तो, उसको मैं अपने रास्ते से ना हटाऊं; वह तो मेरे सुख की हत्या करना चाहता है।

सारी जिन्दगी मैं इतना परिश्रम कर बिना किसी पूंजी के इतना अमीर बना, पर जरा भी सुख-सन्तुष्ट जीवन का दावा भी नहीं कर सकता था?

मेरी बीवियां कोई-गले में फांसी लगाये, कोई कुलत्यागिनि बने, कोई स्वतंत्रता के नाम पर गलत रास्ता अपनाये और कोई कंडे थापती रहे?

फिर भी मैं भाग्य का खिलौना बन कर टुकुर-टुकुर देखता रह जाऊं? मैं क्या मर्द नहीं हूं?

मेरी इस बीमारी ने मुझे तोड़ कर रख दिया। मेरा स्वास्थ्य, गठीला बदन सब चले गये।

मेरी सेवा करने को नर्सिंग होम से छोटी लड़की जो नर्स थीं, मेरे साथ मेरे घर में भी सेवा करने के लिए आई।

वह मेरी तस्वीरों को जो कुछ साल पहले खींची गई थी अब दीवार पर थीं-उन्हें देखकर वह मुग्ध होती दिखाई दी।

वह आश्चर्यचकित हो प्रश्न करती-आपका स्वास्थ्य इतना अच्छा था?

वही नर्स ही मेरी आखिरी-बनी। जो मुझसे तीस-बत्तीस बरस छोटी थी।

आप लोग क्या जमीन से धूल एकत्रित कर मुट्ठी में रख रहे हैं-मेरे ऊपर फेंकने के लिए? उससे क्या आता-जाता है?

मैंने तो उससे विवाह के लिए जोर नहीं दिया था। उसका नाम कावेरी था। उसी ने ही कहा था आप लोगों को विश्वास नहीं आ रहा?

कुछ अविश्वास घटनायें भी इसी संसार में घट जाती हैं। अविश्वास्य है तभी तो इस धरा पर रंग-रंग-रूप भी जिन्दा है। मैंने अपने लाउडन-स्ट्रीट के घर में ही एक पुस्तकालय बनाया था।

जब पौली थी तब उसने किताबें चुनने में मेरी मदद भी की थी।

कावेरी पुस्तकालय के द्वार पर खड़ी होकर ही स्तम्भित हो गई थी। पूछा-आपके पास इतनी किताबें हैं?

उस वक्त मुझे रात-दिन परिचर्या की उतनी आवश्यकता नहीं थी।

वह समय-काल सावधानी से रहने का था-मेरे पास पैसा था तभी पचहत्तर रुपये रोजाना देकर एक रात-दिन के लिए नर्स रख ली थी। उसका काम कम-अवकाश की अधिकता थी। वह मुझे खिलाती और घुमाती रहती।

पूछा-तुम किताबें पढ़ना चाहती हो?

उसकी आंखों में चमक पैदा हो गई। वह बोली-किताब मिले तो मैं और कुछ नहीं मांगूगी।

सच।

सच कहती हूं मुझे अस्पताल में काम करना जरा भी अच्छा नहीं लगता। क्या करूं मां, बाप, भाई, बहन कोई भी नहीं है। पढ़ने-लिखने की सुविधा भी नहीं मिली।

किसी प्रकार इस काम में लग गई। पर मुझे अच्छा नहीं लगता। हर वक्त रोगियों की तकलीफें, मौत-यह सब मैं नहीं देख सकती।

मैंने कहा-''सेवा करना भी तो महान काम है। उसने अपनी नीली आंखों में प्रसन्नता की हँसी की रोशनी भर कर कहा-ओह सभी तो महान काम करने नहीं आते। मुझे वह काम अच्छा नहीं लगता।''

मुझे उसकी सरल स्वीकारोक्ति पर तरस आ गया। मेरे साथ उसका उम्र का इतना व्यवधान और नर्सिंग करते करते ये लोग इतनी स्वछन्द हो जाती हैं कि इन्हें मेरे बिस्तेरे पर बैठने या सोफा के हैन्डल पर बैठकर बात करने में विधा नहीं होती थी।

बात करते-करते मेरे बालों में हाथ फेरती, मेरे हाथ को दबाती रहती।

मैं भी उस सुख को उपभोग करते-करते पूछता फिर तुम्हें क्या अच्छा लगता है सुनूं?

कावेरी हँस-हँस कर खुशी के लहजे में कहती-सुनेंगे। हमेशा के लिए कोई अमीर मुझे पाले, मैं अपनी मर्जी से खाऊं, घूमूं, किताबें पढ़ूं? पाले? इस नई भाषा ने मुझे आकृष्ट किया। मैंने कहा क्या मतलब?

अगर पाले नहीं तो मुझे क्यों इतनी सुविधायें काहे को देगा?

मैं भी बोल उठा-यह तुम्हारी मर्जी है या मजाक कर रही हो?

कावेरी ने अपनी आंखें बड़ी-बड़ी करके कहा, हाय मजाक क्यों होगा। सच कह रही हूं यही मेरे जीवन की ख्वाहिश है-मैं बिना किसी चिन्ता के खा-पी रही हूं-किताबें पढ़ रही हूं-अगर किसी अमीर ने मुझ पर तरस खाकर गोद लिया कि मेरे बाप-मां नहीं हैं-।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book