नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
पथिक पौरुष
उदधि के उदर में हैं मुक्ता भरे,
कोई साहस संजोये उन्हें खोज ले।
राह कितनी कटीली हो कांटो भरी,
पथिक पौरुष दिखाये तो पथ खोज ले।।१
बात बढ़ कर किसी का न उर भेद दे,
बात कहने से पहले अगर तौल ले।
शत्रु भी मित्र बनते देखे हैं यहाँ
त्याग करके अहं, यदि हृदय खोल ले।।२
स्वागत सुखों का, तो वन्दन दुखों का भी करो,
बात सभी ग्रंथों ने, यही तो बतलाई है।
स्फूर्तिवान सुख जो, बनाते हैं जीवन को,
दुख: भी तो जीवन में, लाता गहराई है।।३
कल तो टला, होगा आगे भी भला ही सखे,
भविष्य के प्रति, डरना नहीं अच्छा।
जीवन है तो जियो, इसी क्षण से प्रिये,
प्रति क्षण का, मरना नहिं अच्छा।।४
हर्ष और विषाद को, प्रभू का प्रसाद मान,
हो दोनों में समान, तो बात बन जायेगी।
मिटेगा क्लेश, कष्ट - होंगे निःशेष . सभी,
मिलेगा 'प्रकाश' उर कमल कली खिल जायेगी।।५
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