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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

भाइयों ! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये


जिस संविधान की वर्ष गाँठ प्रति वर्ष मनाते हो,
बीती हुई बातों को बार-बार दोहराते हो।
हाय! वह यादें ! मेरी अश्रु धारा से जानो।
कुछ कहना है, मुझे, उसे भी मानो।
मेरे प्यारे, दुलारे भारत वासियों!
मैंने तुम्हारे लिये कैसे-कैसे सपने सजोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।१।।

कलंक मत लगाओ मेरे नाम पर।
पाओ विजय परिश्रम व ईमानदारी के काम पर।
मैं नहीं कहता,
कि मेरे नाम पर अस्पताल व विद्यालय खोल दो।
 मेरी प्रतिमा को सोने के सिक्कों से तोल दो।
मराठवाड़ा के मराठों ने अपने पूर्वजों की कमाई
मराठा विश्वविद्यालय के नाम पर लगाई।
मराठों ने अपने देश व नाम के लिये त्याग के बीज बोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।२।।

क्या भूल गये मराठों का इतिहास?
जिसने किया था औरंगजेब का सत्यानाश।
वीर शिवा ने कितने लड़े अखाड़े?
मुगलों के थे पैर उखाड़े।
यह नाम, वीर शिवा के हवाले कर देते।
तब तो हम जी भर के साँस लेते।
इतिहास साक्षी है क्षत्रसाल के समक्ष,
मुगल बादशाह चरणावत् होये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।३।।

छीन रहे हो नाम उनका, मेरे नाम के लिये।
हिंसा आग जनी लूट-पाट किस काम के लिये?
रात आने के लिये, सूर्य को मत छिपाओ।
कब तक रोकोगे रात को, हमें यह तो बताओ।
आगे आने वाला प्रभात क्या कहेगा?
फिर इस कलंकित नाम को देश कैसे सहेगा?
जिस देश के लिये माताओं ने इकलौते लाल खोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।४।। .
 
झगड़े की जगह में मेरी प्रतिमा खड़ी कर देते हो।
एक अंगुल बात को, हाथ भर बड़ी कर देते हो।
यह झगड़ा रक्त-पात मुझसे सहा नहीं जाता।
कैसे रहूँ स्वर्ग में, मुझसे रहा नहीं जाता।
हाय ! देश की शान्ति के लिये कैसे-कैसे नियम पिरोये थे। ॥
भाइयों ! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।५।।

जहाँ देखता हूँ कूड़े के ढेर में अपनी प्रतिमा पाता हूँ।
फिर भी अपने आप को बहुत समझाता हूँ।
एक बार मेरे साहित्य को ध्यान से पढ़ो।
तब ऐसे महा कार्यों में आगे बढ़ो।
इस देश की एकता के लिये हम लोग .
जीवन भर नहीं सोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।६।।

इस देश के चमकते सूर्य को ग्रहण मत लगाओ।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक कैसे रहेगा।
हमें यह तो बताओ?
मेरी एकता की नित्य-नित्य बलि चढ़ाते हो।
जय भीम कह कर मेरे दिल को जलाते हो।
वह पौधे कहाँ हैं? जिनको हमने एकता
की केसरिया बरसात में भिगोये थे।  
भाइयों आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।७

हे हमारे दुलारे, प्यारे नेताओं!
देश को जाति व धर्म पर मत बाँटों।
इस रक्त सिंचित पेड़ को जड़ से मत काटो।
इसे काट कर शरण कहाँ पाओगे?
इसे बाँट कर वन्देमातरम् कैसे गाओगे?
याद करो गुलामी के धब्बों को बलिदानियों ने
बिन जाति भेद के अपने रक्त से धोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।८

पार्को में, प्रतिमाओं में, साज सज्जा के कामों में,
ईटों में, कंक्रीटों में, पत्थर के नामों में,
बरसाती पानी की तरह पैसा मत बहाओ।
बेसहारा, गरीबों, मजदूरों के जीवन में सुधार लाओ।
कुटीर उद्योग, फैक्ट्री नये-नये कल कारखाने लगाओ।
सूखे चेहरे, धंसी आँखों में नई जान आये।
बहिन मायावती की वास्तविक यही पहिचान आये।
अपने देश की जनता के लिये यही आशाये संजोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।९

हे बहिन मायावती! मेरी गुहार सुन लो।
मेरी भी करुण पुकार सुन लो।
मेरे नाम पर हिंसा मत भड़काओ।
नये नये अंकुरों को चिर निद्रा में मत सुलाओ।
भले ही मेरी प्रतिमा को मिट्टी में मिला दो।
मेरे देश की जनता में एकता जगा दो।
'प्रकाश' से भर जाय देश यह मेरा
उखड़ जाय घिनौनी राजनीति का डेरा।
इसी देश में गाँधी ने अहिंसा के धागे पिरोये थे।
भाइयों! आज रात अम्बेदकर फूट-फूट कर रोये थे।।१०

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