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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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युवकों हेतु मार्गदर्शिका

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एक अच्छी और सच्ची शुरुआत


दोस्तों ! अब इस किताब ‘समय 25 से 52 का’ तथा आपकी जिन्दगी की किताब में उम्र हो चली होगी 26-28 साल तक की, इससे पहले के समय में व्यक्ति कुछ सपना देख के बिना देर किये कुछ करने की ठान लेता है तो जीवन के इस आशामयी पड़ाव पर आने के बाद व्यक्ति जो आँखों की पुतली पे उम्मीद का दामन संजोये रहता है अपने जीवन के प्रति। तो ऐसी ही घड़ी में लेखक ने आप सबको एक नया नाम दिया है ‘उम्मीदार्थी’। परन्तु ये उपनाम एक निश्चित उम्र के बाद आपसे हट जाना चाहिए। ये नाम आपकी जिन्दगी की किताब से कुछ पन्नों के बाद ही हट जाना चाहिए। आज की युवा पीढ़ी पर शोध और सर्वे करने के बाद ये उपनाम आप केवल इसी पुस्तक में पायेंगे और किसी में नहीं।

उक्त अध्याय का नाम ‘एक सच्ची और अच्छी शुरुआत’ है। आपने कई पुस्तकों में अभी तक ‘एक नयी शुरुआत, एक अच्छी शुरुआत’ इस प्रकार का लेख पढ़ा होगा परन्तु यहाँ लेखक आपको अच्छी और सच्ची शुरुआत के सम्बन्ध में बताना चाहता है क्योंकि ये किताब आपके शुरुआती दौर के कर्म बन्धन के सम्बन्ध में है। अतः तत्सम्बन्ध में मेरी प्राथमिकता है कि मैं आपको एक सच्चा और अच्छा प्रारम्भ कैसा हो, इसकी भूमिका निभाऊँ । ये जो उपरोक्त चर्चा हमने की है इसका क्रियान्वन निश्चित समय में हो जाये इसके लिये मैं आपको वही सुनी सुनाई बात याद दिलाना चाहता हूँ कि ‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब’। कहीं न कहीं ये छोटी सी लाइन बड़ी-बड़ी हस्तियों की बड़ी-बड़ी मंज़िलें पाने का एक हिस्सा रही हैं। इस लाइन को यदि आपकी जिन्दगी की किताब में हिस्सा नहीं दिया तो आपकी किताब कोई पढ़ना पसंद नहीं करेगा न ही आपसे पढ़ी जायेगी। इसीलिए कोई भी शुरुआत हो छोटी-बड़ी, अच्छी-सच्ची उसे निश्चित समय से करो।

पुस्तक के प्रारम्भ में लेख है कि प्रकृति का पहिया निरन्तर घूमता रहता है। उतार-चढ़ाव आते रहते हैं फलस्वरूप जीत-हार तो लगी रहती है। जीत-हार में से जीत बहुत कम मिलती है। आजकल के युवाओं में जीत बहुत सीमित है और निश्चित व्यक्तियों की क़िस्मत में ही निहित है। तो अब बची हार जो सर्वाधिक मात्रा में फैली है और हर किसी को अपना शिकार बना लेती है।

दोस्तो ! ये बात सच है कि जिनके पास आज जीत है उन्होंने भी कभी हार का मुँह देखा होगा फिर प्रयास किया और सफलता को बाध्य किया। शुरुआत के इस मुद्दे पर लेखक आपको यही बताना चाहता है कि...

‘क्या हुआ जो कुदरत ने हमारी परीक्षा ले ली, क्या हुआ जो हम जीवन में इम्तिहान की भेंट चढ़ गये। अब तो हार को ही जीत का आधार बनाना है। हार को ही शुरूआती जीत बनाना है। अर्थात आपकी जो उम्र है वो अभी बहुत कुछ कर गुजरने की है। निराशा को कभी हावी मत होने देना। फिर से एक नयी शुरुआत करना।

मैं नहीं जानता कि तुमने जीवन में कौन कौन सी मंजिल चुन रखी है। पर इतना मैं जानता हूँ कि उन रास्तों पर चलते-चलते कहीं फिसल कर गिर जाओ तो तुरन्त नयी शुरुआत करना। अगर आप अपने सपनों की मंजिल को रास्ते में ही छोड़ आये हो तो आपने मानो अपनों का, सपनों का गला घोट दिया। मन की उत्कंठा में जो चेतना की ज्वाला जगी थी आपने उसे भी बुझा दिया। सफलता की सीढ़ी से पहले कई हार व निराशा की सीढ़ियाँ आयेंगी। ये समझ लो कि जब तक इन पर पाँव नहीं पड़ेगा तो कैसे सफलता पर पहुँचोगे। एक शुरुआत करने के लिये आपको बाध्य तो होना ही पड़ेगा। अन्यथा सिर्फ़ और सिर्फ़ पक्की हार के और समय बर्बादी के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा आपको।

तत्सम्बन्ध में और विस्तारपूर्वक वर्णन के लिये मैं आपको ऐसी कई हस्तियों के, वैज्ञानिकों के और बुद्धिजीवियों के उदाहरण से पेज भर सकता हूँ कि जिन्होंने बार-बार शुरुआत की, सच्ची शुरुआत की, अच्छी शुरुआत की। फलतः कई पुस्तकों में उनके उदाहरण दिये जाते हैं। जैसे... अब्दुल कलाम, महात्मा गाँधी, न्यूटन इत्यादि।

अगर आप हारने के बाद जीवन में एक नई शुरुआत नहीं कर रहे हैं तो आप भी तैयार रहिए उस दुखदायी दौर से गुजरने के लिये जिसमें सिर्फ़ अफसोस ही होता है। जैसा उन लोगों के साथ होता है जो लोग... 

  • एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी करने के बाद करीब से ही हार कर लौट आते हैं।

  • पर्वतारोही जो चोटी के निकट पहुँचते ही गिर जाते हैं और नीचे उतर कर वो उम्मीद ही छोड़ देते हैं।

  • रेस में एक बार पीछे हो गये तो तेज दौड़ने की शुरुआत को ही पीछे छोड़ दिया।

उपरोक्त प्रकार के लोग जब हार कर आधे रास्ते से वापस आ जाते हैं तो दुनिया से ज्यादा ये खुद के तानों से त्रस्त हो जाते हैं और सुन्दर सपना फिर आँखों में ही सज के रह जाता है जिसका सूरज की किरन के सामने कोई अस्तित्व नहीं रहता है। आप सभी इसी उम्र के हो और सही राह पर आसीन हो तो एक बार अच्छे से सुनिश्चित कर लो और बड़ों की सलाह ले लो कि इस लक्ष्य को बीच में छोड़ के मुझे कुछ और करना है या माँ-बाप जैसा चाहेंगे वैसा करना है अन्यथा दिन पर दिन सफलता में विलम्ब होगा।

वैसे पढ़ाई तो ताउम्र चलती रहती है और यहाँ जो संघर्ष की बात हो रही है असल में वो स्कूली शिक्षा के बाद ही आरंभ होता है। मेरे सर्वे के अनुसार इस देश में करोड़ों की संख्या में युवक- युवतियाँ किसी विशेष नौकरी के लिये, खास डिग्री के लिये या विदेश में स्कालरशिप के लिये पढ़ रहे हैं। इसी वजह से स्कूलों से ज़्यादा कोचिंग संस्थानों की तादाद भी बढ़ रही है। उसमें से लगभग 50 फीसदी तो प्रतिष्ठित सरकारी नौकरी को पाने की चाह में पढ़ रहे हैं। भारत की युवा पीढ़ी विशेष संघर्ष और कड़ी मेहनत के दौर से जो गुजर रही है उसमें एक ‘मोटा हिस्सा’ इसी पढ़ाई का है।

मानो आपने आई.ए.एस. के सम्बन्ध में पढ़ाई शुरू की है तो ये आपकी अच्छी शुरुआत है और पहले चरण में चयनित न होकर फिर से शुरुआत करना ये आपकी सच्ची शुरुआत है। किसी के पास पहले से कोई नौकरी है और कोई बड़े पद के लिये अचयनित हो जाने के बाद भी पढ़ाई शुरू करना, ये आपकी सच्ची शुरुआत है।

स्कूली शिक्षा में फेल होकर कोई गलत कदम उठाने के बजाय फिर से पढ़ाई करना, ये आपकी सच्ची शुरुआत होगी। किसी भी सच्ची शुरुआत में पिछली गलतियों और निराशा की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। जैसे किसी कलाकार को कला का प्रदर्शन करने के बाद भी कोई सम्मान नहीं मिलता परन्तु अगली बार मंच पे कला का प्रदर्शन करते वक़्त यदि वह दर्शकों की पसंद का ध्यान रख लेता है तो यही कलाकार की सच्ची शुरुआत होगी।

प्यारे उम्मीदार्थियों ! इस दुनिया में सूरज को भी अपने सपनों से ज्यादा चमकने मत देना। मन में दृढ़ संकल्प करके, हर एक जरूरी शुरुआत करके तुम्हें नौकरी तो पाना है, लक्ष्य तो पाना है, मंजिल तो पाना है। जीवन के 25वें-26वें साल में अपने कर्तव्यों के लिये एक अच्छी और सच्ची शुरुआत तो होना ही चाहिए, ये ही शुरुआत यदि आप बहुत पहले ही कर देते हो तो इससे अच्छी सार्थकता और क्या होगी।

एक व्यापारी की सच्ची शुरुआत तब होगी जब वह पहले पूंजी लगाने के पश्चात भी उसे घाटा होता है और अगली बार कड़ी मेहनत से, पूरी लगन के साथ जो व्यापार फिर शुरू कर देता है, यही उसकी सच्ची शुरुआत है।

कोई युवा नेता एक चुनाव हारने के बाद भी 5 साल बाद फिर से लगन के साथ प्रचार करके वह जीत जाता है, यही उसकी सच्ची शुरुआत है।

ओलंपिक में एक नम्बर से मेडल हारने वाला चार साल बाद फिर से मेहनत करके लक्ष्य साध लेता है और मेडल ले आता है। इसी प्रकार उसकी एक सच्ची शुरुआत है।

दोस्तों ! उम्र के किसी भी पड़ाव पर यदि आप हार जाओ तो फिर से एक बार शुरू कर के देखना, थोड़ा वक़्त लग सकता है पर परिणाम मनचाहा आ सकता है।

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Deepak Malviya

Nice beginning