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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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युवकों हेतु मार्गदर्शिका

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सोचना बन्द न करें

क्या आप जानते हैं? इस दुनिया में दूसरा ताजमहल कहाँ बना है। मैं बताता हूँ - आगरा में, क्योंकि पहला ताजमहल बना था उसकी ‘सोच में’।

ये रक्त, मांस, अस्थि पंजर का भारी भरकम शरीर सिर्फ एक छोटी सी सोच से चलता है। सोच से ही उसका पूरा दिन गुजरता है और फिर पूरा जीवन। अपनी नस-नस उसके प्रति सेकेंड मिलने वाले आदेश पर चलती है। जैसे कितनी ही बड़ी इलेक्ट्रिक या मेकेनिकल मशीन सिर्फ एक छोटे से सॉफ्टवेयर से चलती है। अगर वो सॉफ्टवेयर खाली होगा तो मशीन कुछ नहीं कर पाएगी उसी तरह खाली दिमाग भी इंसान को खाली-खाली बना देता है। इसलिए खाली मत बैठो, कुछ न कुछ सोचते रहो। माना कि एक समय में बहुत सारा सोचा हुआ नहीं कर सकते इसलिए डायरी में लिखते रहो। इससे भविष्य की कठिनाइयों से भी लड़ने में मदद मिलेगी और समय का सदुपयोग भी हो जाएगा। सोच के विषय में एक दिलचस्प बात ये है कि प्रकृति हममें प्रतिदिन 60000 सोच उत्पन्न करती है। फिर ये इंसान के विवेक पर निर्भर करता है, उसकी कार्यशीलता या कार्यक्षमता पर निर्भर करता है कि वो इसका कितना फायदा उठा सकता है। 60 हजार में से कोई 60 वाक्य को भी गम्भीरता से ले ले और उन पर अमल कर ले तो उसका जीवन सार्थक बन सकता है और कोई 60000 में से कुछ भी नहीं अपनाए तो वो निरर्थक भी बन सकता है। मनुष्य की जो आत्मा है वो सोच के ही रूप में कार्य करती है। अगर उसकी सोच ही मर गई तो वो बेजान सा हो सकता है शायद। सफलता और अपना लक्ष्य अमीरी-गरीबी की मोहताज नहीं हो सकती पर बिना सोच-समझ के कोई भी सफलता अधूरी है या बेकार सी है। जीवन के किसी भी मोड़ पर एक खास मकसद को पाने के लिये ‘एक विशेष सोच’ बहुत जरूरी है।

मेरे हिसाब से ‘सोच’ उस सिलाई के धागे की तरह काम करती है जो अपने कपड़ों के विभिन्न हिस्सों को जोड़े रखती है। अगर उस कपड़े में से पूरी सिलाई निकाल दी जाए तो उसके सभी हिस्से बिखर जाएंगे। ऐसे ही उस कपड़े की तुलना तुम अपनी मंजिल से करो और धागे की तुलना अपनी ‘विशिष्ट सोच’ से।

दोस्तों ! ये जो सोच का अध्याय है इस पुस्तक में, इससे लेखक आपको ये बताना चाहता है कि एक पल को परछाई आपका साथ छोड़ दे पर आप सोच का साथ कभी मत छोड़ना। इसके अभाव में आप रास्ते पर चलते-चलते दांए से बाएं भी जा सकते हैं। इस छोटे से नुकसान से आप अनुमान लगा लीजिए कि जिन्दगी के बड़े-बड़े रास्तों में, आड़े-तिरछे मोड़ों पर कितना नुकसान हो सकता है। ये पूरी पुस्तक वैसे तो सफलता, मेहनत और मंजिल के बारे में लिखी गई है। अगर आपको जिन्दगी के एक हिस्से में सफलता मिल भी जाती है तो फिर भी आपको सोचना बन्द नहीं करना है। ये ‘चार’ दिन की जिन्दगी सिर्फ उन्हीं लोगों के लिये है जो आलस्य की चादर तान कर, थोड़ी सी ही मेहनत के तकिए पर सर रख कर ‘नकारात्मकता’ के गद्दे पर आराम से सो रहे हैं। वर्ना जो लोग सूरज की नई किरन के साथ अपनी एक नई सोच को जन्म देते हैं जो उनके पूरे दिन को और अगले कई दिनों को समर्थ बनाती है। ऐसे लोगों को सोच के साथ प्रकृति भी हर दिन नया मौका फरमाती है। जिन्दगी बहुत बड़ी हो जाती है - ऐसे कर्मठ लोगों के लिये। कभी-कभी तो ये लोग चार दिन में चार टारगेट ‘लक्ष्य’ को पूरा कर लेते हैं।

दोस्तों ! आपके आसपास ये दोनों तरह के उदाहरण होंगे : ‘एक तो चार दिन की जिन्दगी वाले और चार दिन में चार लक्ष्य पूरा करने वाले’ लेखक की आपको सलाह है कि ऐसे लोगों के साथ चार दिन भी नहीं रहना वर्ना मानसिक कीटाणु आपको लग सकते हैं क्योंकि संगत का भी अच्छा खासा असर पड़ता है। ऐसा अपने साधु-संत भी कह गये हैं, क्यों । क्योंकि हर कोई ‘कमल’ या ‘हीरा’ नहीं होता जो कीचड़ और कोयले की संगत से अपने आप को बचा ले।

अगर बढ़ती उम्र में एक उचित दिशा में धैर्य के साथ सोच को बरकरार रखेंगे तो वो हमेशा आपको कुछ न कुछ दे के ही जाएगी। जो लोग एक बार शासकीय नौकरी लगने के बाद निरन्तर पद बदलते हुए उच्च वर्ग को प्राप्त होते हैं। वे लोग इसी का उदाहरण हैं। क्योंकि वे लोग एक मंजिल मिलने के बाद सोचना बन्द नहीं करते फलस्वरूप मेहनत करते जाते हैं और शुभ फल को प्राप्त होते हैं।

भारत में अपने जमाने के सबसे अमीर आदमी ‘धीरू भाई अंबानी’ की जीवनी आप पढ़ेंगे तो उसमें भी यही पाएंगे कि कई बार उन्हें इच्छित सफलता मिलने के बाद भी वे लगातार नये-नये कामों को शुरू करते रहे और शीर्ष तक पहुँचते रहे, क्योंकि उनकी सोच कभी नहीं रुकी। सिर्फ उतनी देर ही सोचना बन्द करते थे जब वे चन्द घंटे सोते थे। बहुत लोग ऐसे महान आदमी की जीवनी पढ़ते हैं पर उनके बाद कोई अंबानी नहीं बन पाया। मैं, दोस्तों सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप उनका थोड़ा भी अंश अपने में उतार लोगे तो बहुत कुछ बदलाव आपके जीवन में हो सकता है।

रेलवे की पटरी पर हाकी की प्रैक्टिस करने वाले हाकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचन्द’ ने हाकी की परिभाषा ही बदल दी थी। कई प्रकार के मेडल जीतने के बाद भी वे अपनी विशिष्ट सोच के साथ अभ्यास करते रहे और दुनिया का हर वो सम्मान प्राप्त किया जो हाकी के अन्तर्गत दिया जाता है। वे कई देशों में जाकर उन्हीं को हराकर आते थे और अपने देश के झण्डे को वहीं सलामी देकर आते थे। मैदान में किसी को हराने से पहले वो रात में ही मन में हाकी खेलते थे और दूसरे दिन उनकी जीत निश्चित ही पक्की होती थी। इसी क्रम में एक तथ्य ये सामने आता है कि निरन्तर सोच एक सही दिशा और उचित ढंग से होनी चाहिए। अगर गलत सोच के वशीभूत होकर आपने कुछ कदम उठा लिया तो जिन्दगी में आप बहुत नीचे भी जा सकते हो। आप जैसे थे पहले, उससे भी नीचे... । इसका सटीक उदाहरण मैं आपको बताता हूँ - रत्नाकर नाम के कुख्यात डाकू की किसी दिन महान संत से भेंट हुई। डाकू ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया पर उनके अभीष्ट ज्ञान अैर प्रबल तेज के कारण उनकी मानसिकता में ऐसा बदलाव आया और उनकी आत्मा में ऐसा भूचाल आया और उनकी सोच ही पलट के रख दी। इन्हीं संत से मिलने के बाद रत्नाकर डाकू से ‘ऋषि वाल्मीकि’ बन गये और निरन्तर धर्म ज्ञान की संगत में कई ग्रन्थों, लेखों की रचना की। उनकी सोच में इस कदर परिवर्तन आया कि कई जगह वे आज पूजे जाते हैं। अगर उन्होंने निरन्तर अपनी सोच को सही दिशा में नहीं लगाया होता तो वे वापस डाकू प्रवृत्ति को भी पा सकते थे या उस महान संत से भेंट करने के बाद, तीन चार दिन बाद वे वो ही पुराना रास्ता अपना सकते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया, सोच को एक सही दिशा में बढ़ाया, फलस्वरूप वो ऋषि वाल्मीकि बन गये।

इस दुनिया में और अपने देश में भी ‘नशे’ को युवा पीढ़ी से खासकर जोड़कर देखा जाता है। युवा पीढ़ी और नशे का ‘नया-नया’ रिश्ता होता है। वो दोनों एक दूसरे को बहुत लगन से निभाते हैं। इस नशे को बरकरार रखते-रखते वो अपने पास से वो सब कुछ गंवा देते हैं जो ‘कुछ लोग पूरी जिन्दगी जद्दोजहद करके भी हासिल नहीं कर सकते’ । पैसे और पावर का दुरुपयोग कर वो बर्बाद हो जाते हैं। अगर वो निरन्तर अपनी सोच को सही दिशा में बढ़ाते तो दुगनी-तिगुनी प्रसिद्धि हासिल कर लेते पर वो सोच को गलत दिशा में ले के गये, और उस स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं जो उनकी पूरी पीढ़ी में अभी तक किसी को नहीं मिली हो।

इनमें से जिनका विवाह हो चुका है उनमें से कई लोगों ने अपनी सोच का गला घोट दिया होगा। अपनी पुरानी पहचान और कला को छुपा लिया होगा। अगर उनमें वास्तविकता में कोई प्रतिभा है तो उसे सही दिशा में आगे सोच के साथ बढ़ाना चाहिए मगर आप उसी विधा में दृढ़ संकल्प लेने का सोच लेते हो और एक कदम भी आगे बढ़ाते हो तो ये नियति आपके साथ दो कदम चलेगी तथा प्रकृति आपको छोटी-छोटी सफलता दिलाना शुरू कर देगी। क्योंकि दुनिया की सबसे फास्ट ट्रेन ‘बुलेट ट्रेन’ पहले किसी की सोच में चली होगी फिर लोगों के बीच चली।

प्यारे दोस्तों ! आप जीवन के किसी पड़ाव पर सबसे सम्पन्न हो भी गए हो तो भी ‘सोचना बन्द न करें’। अगर आप ऐसा नहीं करते हो तो जिस सिद्धान्त के लिये ईश्वर ने हमें मनुष्य रूप दिया है उस सिद्धान्त को पूरा होने में ‘कहीं न कहीं चूक रह जाएगी’।

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लोगों की राय

Deepak Malviya

Nice beginning